तंतु से वस्त्र तक
By - Pankaj kumar (Student)
भूमिका - हम रोज कपड़े पहनते हैं । कई तरह के कपड़ों का हम अलग अलग उपयोग करते हैं।हमारे कपड़ों में कई तरह की विशेषताएं और विविधताएं होती हैं । कुछ महीन, कुछ मोटे, कुछ रंगीन कुछ सफेद कुछ बेहद चमकीले और कुछ खुरदुरे वस्त्र होते हैं।
- वस्त्र धागे की पतली लड़ी से मिलकर बनी होती हैं जिसे तंतु कहते हैं।
- कुछ वस्त्र सूती, रेशमी जूट के तंतु पौधे और जंतुओं से प्राप्त होते हैं, इन्हें प्राकृतिक तंतु कहते हैं।
- कपास का सूत कपास से, रेशमी सूत्र रेशम के कीड़ों से और ऊन, ऊट, बकरी आदि से प्राप्त किया जाता है
- इसके अलावा केले के पत्ते, तने बांस से भी तंतु प्राप्त किया जाता है।
- हजारों वर्षों तक प्राकृतिक तत्वों से ही वस्त्र बनाए जाते थे ।
- ऐसे रासायनिक पदार्थ जिसके स्रोत पौधे व जंतु नहीं है, से तंतु का निर्माण किया जा रहा है इन्हें मानव निर्मित तंतु कहते हैं । जैसे पॉलिस्टर, नायलॉन एक्रोलीक आदि।
साधारणतया कपास के पौधे वहां उगाए जाते हैं जहां की मिट्टी काली तथा जलवायु गर्म होती है। हमारे देश में कुछ राज्य हैं जहां कपास की खेती की जाती है जैसे महाराष्ट्र गुजरात कर्नाटक पश्चिमी मध्य प्रदेश पश्चिमी आंध्र प्रदेश आदि।
कपास के पौधे से रुई बनती है। कपास की फसल पक जाने पर कपास चुने जाने के लिए तैयार हो जाता है । कपास के फूल काफी विकसित हो जाने पर उजली उजली रुई की गोलक रूप में दिखाई देने लगते हैं जिसे का कपास गोलक कहते हैं।
- साधारणतया पौधे से कपास को हाथों से चुना जाता है। इसके बाद बड़े-बड़े मशीन की सहायता से कपास को बिनौली से अलग किया जाता है। पुराने जमाने में इस क्रिया को कपास 'ओटाना' कहते हैं । पारंपरिक ढंग से कपास हाथों से ओटी जाती थी।
- पटसन तंतु को पटसन के पौधे के तने से प्राप्त किया जाता है। भारत में इसकी खेती वर्षा ऋतु में की जाती है। भारत में प्रथम को प्रमुख रूप से पश्चिम बंगाल बिहार तथा असम में उगाया जाता है।
- बिहार के कटिहार, मधेपुरा, सहरसा, खगड़िया, सुपौल तथा दरभंगा में जुट अधिक मात्रा में उगाया जाता है। जब पौधे में फूल आने लगते हैं तो उसे काट लेते हैं।कुछ दिन तक इस केतनो को पानी में डुबोकर रखा जाता है ताकि रेशों को अच्छी तरह अलग किया जा सके, फिर इसको पानी में पटक पटक कर धुलाई कर देते हैं।
- वस्त्र बनाने से पहले इन सभी तंतुओं को धागे में परिवर्तित कर लिया जाता है। रेशों से धागा बनाने की प्रक्रिया को कताई कहते हैं। इस प्रक्रिया में रुई के एक पुंज से रेशे को खींच कर ऐठते हैं । ऐसा करने से रिश्ते आपस में गुथ जाते हैं और वह धागा बन जाता है।
- कताई के लिए तकली का प्रयोग किया जाता है। हाथ से चलाने वाली कताई में उपयोग होने वाली एक अन्य युक्ति चरखा है। चरखी के उपयोग को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने स्वतंत्रता आंदोलन के एक पक्ष के रूप में लोकप्रियता प्रदान की थी। उन्होंने लोगों के हाथ से काते धागों से बनी वस्तुओं को पहनने तथा ब्रिटेन के मीलों में बने आयातित कपड़ों का बहिष्कार करने के लिए प्रोत्साहित किया था।
- वस्त्रों की बुनाई करघा या तो हाथों से चलने वाले होते हैं अथवा मशीन से बिजली से चलने वाले होते हैं।
- बंधाई में किसी एकल धागे का उपयोग वस्त्र बनाने के लिए किया जाता है। मौजे और बहुत से ऐसे वस्त्र बंधाई द्वारा बनाए जाते हैं बंधाई हाथों से तथा मशीनों द्वारा भी की जाती है।\
- बुनाई तथा बंधाई का उपयोग अलग-अलग तरह के वस्तुओं के निर्माण में किया जाता है। इन कपड़ों से पहनने के अलग-अलग वस्तु तैयार किए जाते हैंl
- वस्त्रों के विषय के प्रमाणों से ऐसा प्रतीत होता है कि प्रारंभ में लोग वृक्षों की छाल, बड़ी-बड़ी पत्तियों अथवा जंतुओं के चमड़े से अपने शरीर को ढकते थे।
- कृषि में विकास के साथ-साथ समुदाय में रहना शुरू करने के बाद मानव ने पतली पतली टहनियों तथा घास को बुनकर चटाई या तथा टोकरी बनाना सीखा।
- पेड़ों के पत्ते लताओं जंतुओं से प्राप्त ऊन अथवा बालों को आपस में ऐठेन देकर लंबी लड़ियां बनाई जाती हैं थी, इनको बुनकर वस्त्र तैयार किए जाते थे ।
- पुराने जमाने में भारतवासी रुई से बने वस्त्र पहनते थे।परंतु क्या यह आश्चर्यजनक बात नहीं है कि आज भी साड़ी, धोती, लूंगी, गमछा चादर, साल, दुपट्टा और पगड़ी का बिना सिले वस्त्र के रूप में उपयोग किया जाता है।
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