
अध्याय 7 : संसाधनप्राकृतिक संसाधन : शक्ति
/ ऊर्जा संसाधन(POWER Resources)

शक्ति (ऊर्जा) संसाधनों का प्रयोग (Use of Power Resources)
शक्ति अर्थात ऊर्जा संसाधन विकास की कुंजी है ।आर्थिक उद्योगों में उत्पादन, वितरण तथा परिवहन, आदि के लिये मानव प्राचीन काल से ही अपनी शारीरिक शक्त तथा पशुओं की शक्ति का प्रयोग करता रहा है। बाद में मनुष्य ने पवन और बहते जल के ठारा अपनी चक्कियों और यन्त्रों को चलाना आरम्भ कर दिया। अठारहवीं शती की औद्योगिक क्रान्ति के बाद से कोयला, खनिज तेल, प्राक्वृतिक गैस और जल-विद्युत् का प्रयोग शक्ति-साधन के रूप में किया जाने लगा पिछली चौथाई शताब्दी से अणुवीय शक्ति का प्रयोग भी विकसित होने लगा है ।
मुख्य शक्ति के स्रोत निम्नलिखित हैं-
(i) मानव की घारीरिक शक्ति, (ii) पशु गक्ति, (iii) पवन, (iv) बहता जल, (v) ज्वार भाटे की पक्ति, (vi) सौर्य शक्त, (vii) ईधनों से प्राप्त शक्ति, जिनमें लकड़ी और लकड़ी का कोयला (charcoal), खानों से प्राप्त कोयला (coal), पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस और अणुवीय ईधन हैं ।
वर्तमान काल में औद्योगिक शक्ति (ऊर्जा) के पाँच साधन हैं-
(i) कोयला (coal), (ii) खनिज तेल ( पेट्रोलियम), (iii) भ्राकृतिक गैस, (iv) बहुता हुआ जल, और (v) अणुवीय ईंधन हैं । इनके दो वर्ग हैं-(1) प्रयोग द्वारा समाप्त न होने वाले साधन कोयला, पेट्रोलियम, गैस और अणुवीय ईंधन है ।
(2) प्रयोग द्वारा समाप्त न होने वाला तथा प्रकृति द्वारा पुनःपूर्ति किया जाने वाला संसाधन, बहुता हुआ जल है।
शक्ति संसाधनों के प्रकार
शक्ति संसाधन के वर्गीकरण के विविध आधार हो सकते हैं।
1.उपयोग स्तर के पर शक्ति के दो प्रकार हैं- सतत् शक्ति एवं समापनीय शक्ति। सौर किरणें, भूमिगत उष्मा. पवन प्रवाहित जल आदि सतत् शक्ति स्रोत हैं जबकि कोयला, पेट्रोलियम. प्राकृतिक गैस एवं विखण्डनीप तत्व समापनीय शक्ति स्रोत के उदाहरण हैं।
2.उपयोगिता के आधार पर ऊर्जा को दो भागों में विभक्त किया जाता है। पहला प्राथमिक ऊर्जा, जैसे- कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस तथा रेडियोधर्मी खनिज आदि तथा डूसरा गौण: ऊर्जा, जैसे- विद्युत, क्योंकि यह प्राथमिक ऊर्जा से प्राप्त किया जाता है।
3.स्रोत की स्थिति के आधार पर शक्ति संसाधन को दो भागों में वर्गीकृत किया जाता है। वर्ष पूर्व पहला क्षयशील शक्ति संसाधन जैसे-कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस तथा आण्विक खनिज आदि।: तथा दूसरा अक्षयरशील शक्ति संसाधन. जैसे- प्रवाही जल, पवन, लहरें, सौर शक्ति आदि।
4.सरचनात्मक गुणों के आधार पर ऊर्जा के दो स्रोत हैं- जैविक ऊर्जा स्रोत तथा अजेविक ऊर्जा। मानव एवं प्राणी शक्ति को जैविक तथा जल शक्ति, पवन-शक्ति, सौर शक्ति तथा इधन शक्ति (खनिज ऊर्जा) आदि को अजैविक शक्ति ग्रोत के अन्तर्गत रखा जाता है।
5.शक्ति के स्रोतों प्राराम्भ को समय के आधार पर पारम्परिक तथा गैर पारम्परिक शक्ति संसाधन के रूप में वर्गीकृत किया में प्रयुत्न जाता है। कोयला, पेट्रोलियम तथा प्राकृतिक गैस पारम्परिक तथा सूर्य, पवन, ज्वार, परमाणु ऊर्जा, गर्म झरने आदि गैर पारम्परिक शक्ति संसाधन के उदाहरण हैं।
आधुनिक काल में शक्ति के मुख्य स्रोतों में ज्वारीय शक्ति ,भतापीय शक्ति तथा जैव शक्ति का भी अध्ययन आवश्यक हो गया है।

भारत में पारम्परिक शक्ति के विभिन्न स्रोतों का विवरण
कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस जैसे खनिज ईंधन आदि ये पारम्परिक शक्ति संसाधन है तथा ये समाप्य संसाधन है ।
कोयला-
भारत विश्व उत्पादन में तीसरा स्थान है।
1 जनवरी 2008 तक 1200 km की गहराई तक कोयले का अनुमानित भंडार 26454 करोड़ टन आंका गया था । यहाँ कोयला भंडार दो मुख्य भागों में है।
(i) गोंडवाना समूह-भारत के 96% कोयला भंडार इस समूह के हैं तथा भारत के कुल उत्पादन का 99% भाग प्राप्त होता है।
गोंडवाना कोयला क्षेत्र चार नदियों में पाए जाते हैं-
(क) दामोदर घाटी (ख) सोन घाटी (ग) महानदी घाटी (घ) वर्धा-गोदावरी घाटी
(ii) टर्शियरी समूह-टर्शियरी मुख्यत: असम, अरूणाचल प्रदेश, मेघालय, और तमिलनाडु में मिलता है।
गोंडवाना समूह का कोयला झारखण्ड, प०बंगाल, उड़ीसा, मoप्रदेश में मिलता है।
गोंडवाना काल के कोयले का भारत में वितरण
उत्तर- गोंडवाना समूह में भारत के 96% कोयले का भंडार है तथा कुल उत्पादन का 99% भाग प्राप्त होता है। गोडवाना कोयला क्षेत्र मुख्यतः चार नदियों घाटियों में मिलते हैं-(i) दामोदर घाटी (ii) सोन (iii) महानदी (iv) वर्धा-गोदावरी ।
गाडवाना समूह के कोयला क्षेत्र-
झारखंड- झरिया, बोकारो, गिरीडीह कर्णपूरा, रायगढ़
महाराष्ट्र-चाँदा और वर्धा, बल्लारपुर
मद्यप्रदेश-सिंगरौली, उमरिया, सोहागपुर
प॰बंगाल - रानीगंज, दार्जिलिंग, वीरभूम
आंध्रा प्रदेश - सस्ती, तन्दुर, भोर, सिगदेनी आदि ।
प्रश्न -. कोयले का वर्गीकरण कर उनकी विशेषताओं को स्पष्ट कीजिये?
उत्तर-(i) भारत में कोयला सबसे अधिक पाए जाने वाला जैविक ईंधन है । यह देश की ऊर्जा आवश्यकता को सबसे अधिक पूरा करता है। यह ऊर्जा-उत्पादन तथा घरेलू आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उपयोग में लाया जाता है। (ii) कोयले का निर्माण लाखों वर्ष पहले हुआ था।
कोयला कई रूपों में पाया जाता है। यह इस बात पर निर्भर है कि कोयला कितनी गहराई पर दाब तथा तापमान पर दबा हुआ है। 1. पेड़-पौधे के अपशिष्ट जो दलदल में दबे हुए थे, को पीट कहते है। इसमें कम कार्बन होता है तथा कम ताप क्षमता होती है।
कोयले के प्रकार-
(i) लिग्नाइट-यह निम्न कोटि का भूरा कोयला होता है । इसके भंडार नेवेली (तमिलनाडु) में पाए जाते हैं। इसका उपयोग विद्युत बनाने में किया जाता है ।
(ii) बिटुमिनस-कोयला जो अधिक गहराई पर दबा हुआ है बिटुमिनस कोयला है। यह वाणिज्यिक कार्यों के लिए अधिक लोकप्रिय है । यह मध्यम कोटि का कोयला है।
(iii) एन्थ्रासाइट-यह उच्च कोटि का कठोर कोयला है
(iv) भारत में कोयले के पृष्ठभूमि-कोयला भारत में दो भू-गर्भिक श्रेणियों में पाया जाता है।गोंडवाना जो 200 मिलियन वर्ष पुराने हैं तथा टरशरी जो 55 मिलियन वर्ष पुराने हैं । गोंडवाना कोयला के प्रमुख भंडार दामोदर घाटी, पश्चिम बंगाल (रानीगंज) में स्थित हैं । झारखंड झरिया, बोकारो आदि महत्त्वपूर्ण कोयला क्षेत्र हैं । गोदावरी- महानदी सोन और वर्धा घाटी में भी पाया जाता है ।
(v) टरशरी क्रोयला- यह मेघालय, असम, अरुणाचल प्रदेश और नागालैण्ड में पाया जाता है । कोयला भारी पदार्थ है, परन्तु जलने में वजन कम हो जाता है। और राख में बदल जाता है। इसलिए भारी उद्योग में ताप विद्युत बनाने में प्रयोग किया जाता है।

पेट्रोलियम
कोयले के बाद, भारत का मुख्य ऊर्ज संसाधन है पेट्रोलियम। पेट्रोलियम का इस्तेमाल कई कार्यों में ऊर्जा के स्रोत के रूप में होता है। इसके अलावा पेट्रोलियम उत्पादों का इस्तेमाल कच्चे माल के रूप में कई उद्योगों में होता है। उदाहरण: प्लास्टिक, टेक्सटाइल, फार्मास्यूटिकल्स, आदि।
भारत में पाया जाने वाला पेट्रोलियम टरशियरी चट्टानों की अपनति और भ्रंश ट्रैप में पाया जाता है। चूना पत्थर या बलुआ पत्थर की सरंध्र परतों में तेल पाया जाता है जो बाहर भी बह सकता है। लेकिन बीच बीच में स्थित असरंध्र परतें इस तेल को रिसने से रोकती हैं। इसके अलावा सरंध्र और असरंध्र परतों के बीच बने फॉल्ट में भी पेट्रोलियम पाया जाता है। हल्की होने के कारण गैस सामान्यतया तेल के ऊपर पाई जाती है।
भारत का 63% पेट्रोलियम मुम्बई हाई से निकलता है। 18% गुजरात से और 13% असम से आता है। गुजरात का सबसे महत्वपूर्ण तेल का क्षेत्र अंकलेश्वर में है। भारत का सबसे पुराना पेट्रोलियम उत्पादक असम है। असम के मुख्य तेल के कुँए दिगबोई, नहरकटिया और मोरन-हुगरीजन में हैं।
भारत में खनिज तेल के वितरण
उत्तर- भारते में मुख्यत: पाँच तेल उत्पादक क्षेत्र है-
(i) उत्तरी पूर्वी प्रदेश-देश का सबसे पुराना तेल उत्पादक क्षेत्र है । ऊपरी असम घाटी, अरूणाचल प्रदेश, नागालैंड में मिलते हैं इस क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण उत्पादक असम में दिग्बोई, डिग्बोई, नहरकटिया, मोरान, रूद्रसागर है । अरूणाचल प्रदेश- निगरू, नागालैंड के बोरहोला तेल क्षेत्र-
(ii) गुजरात क्षेत्र- खम्भात बेसिन, अंकलेश्वर कलोला, नवगांव, कोशाम्बा ।
(iii) मुंबई हाई-मुंबई तट से 176 किमी० दूर उत्तर-पश्चिम अरब सागर में ।
(iv) पूर्वी तट प्रदेश-कृष्णा, गोदावरी, कावेरी नदियों की श्रेणियों में ।
(v) बारमेर श्रेणी-मंगला क्षेत्र ।हैं
प्राकृतिक गैस
प्राकृतिक गैस या तो पेट्रोलियम के साथ पाई जाती है या अकेले भी। इसका इस्तेमाल भी ईंधन और कच्चे माल के तौर पर होता है। कृष्णा गोदावरी बेसिन में प्राकृतिक गैस के बड़े भंडार की खोज हुई है। खंभात की खाड़ी, मुम्बई हाई और अंदमान निकोबार में भी प्राकृतिक गैस के बड़े भंडार हैं।
मुम्बई हाई और कृष्णा गोदावरी बेसिन को पश्चिमी और उत्तरी भारत के खाद, उर्वरक और औद्योगिक क्षेत्रों को एक 1700 किमी लम्बी हजीरा-विजयपुर-जगदीशपुर पाइपलाइन जोड़ती है। प्राकृतिक गैस का मुख्य इस्तेमाल उर्वरक और बिजली उत्पादन में होता है। आजकल, सीएनजी का इस्तेमाल गाड़ियों के ईंधन के रूप में भी होने लगा है।
विधुत शक्ति
बिजली
विद्युत का उत्पादन मुख्य रूप से दो तरीकों से होता है। एक तरीके में बहते पानी से टरबाइन चलाया जाता है। दूसरे तरीके में कोयला, पेट्रोलियम या प्राकृतिक गैस को ईंधन के रूप में इस्तेमाल करके भाप बनाई जाती है जिससे टरबाइन चलाया जाता है। देश के मुख्य पनबिजली उत्पादक हैं भाखड़ा नांगल, दामोदर वैली कॉरपोरेशन, कोपिली हाइडेल प्रोजेक्ट, आदि। वर्तमान में भारत में 300 से अधिक थर्मल पावर स्टेशन हैं।
इसके अतिरिक्त विदूत का उत्पादन आणविक खनिजो के विखंडन से भी किया जाता है । जिसे परमाणु विद्धुत भी खा जाता है ।
जल विद्धुत
जल विद्युत उत्पादन हेतु अनुकूल भौगोलिक एंवं आर्थिक कारकों की विवेचना -
उत्तर-जल एक उदाह्यशील नवीकरणीय संसाधन है । इससे उत्पन्न जल-विद्युत शक्ति प्रदूषण मुक्त होती है । जलविद्युत उत्पादन के लिए सदावाहिनी नदी में प्रचुर जल की राशि, नदी मार्ग में ढाल, जल का तीव्र वेग, प्राकृति जल प्रपात का होना इत्यादी भौतिक दशाएँ हैं। जो पर्वतीय एवं हिमानीकृत क्षेत्रों में पाया जाता है । इसके उत्पादन के लिए आर्थिक दशाएँ जैसे-सघन औद्योगिक क्षेत्र वाणिज्यिक एवं सघन आबाद क्षेत्रों जैसा बाजार पर्याप्त पूँजी निवेश परिवहन के साधन प्रौद्योगिकी ज्ञान एवं ऊर्जा के अन्य स्रोतों का अभाव प्रमुख है ।
वितरण
संक्षिप्त भौगोलिक टिप्पणी –
(1) भाखड़ा नंगल परियोजना-सतलज नदी पर हिमालय प्रदेश में विश्व के सर्वोच्च बाँधों में एक है । भाखड़ा बॉँध की ऊँचाई 225 मीटर है । यह भारत की सबसे बड़ी परियोजना है। जहाँ चार शक्ति गृह एक भाखड़ा में दो गंगुवात में और एक स्थापित होकर 7 लाख किलोवाट विद्युत उत्पन्न कर पंजाब, हरियाणा. दिल्ली, उतरांचल, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान तथा जम्मू-कश्मीर राज्यों में कृषि एवं उद्योगों में क्रांतिकारी परिवर्तन ला दिया।
(2) दामोदर घाटी परियोजना-यह परियोजना दामोदर नदी के भयंकर बाढ़ से झारखण्ड एवं पश्चिम बंगाल को बचाने के साथ-साथ तिलैया, मैथन, कोनार और पंचेत पहाड़ी में बाँध बनाकर 1300 मेगावाट जल विद्युत उत्पन्न करने में सहायक है। इसका लाभ बिहार, झारखण्ड एवं पश्चिम बंगाल को प्राप्त है।
(3) कोसी परियोजना-उत्तर बिहार का अभिशाप कोशी नदी पर हनुमान नगर (नेपाल) में बाँध बनाकर 20000 किलोवाट बिजली उत्पन्न किया जा रहा है जिसकी आधी बिजली नेपाल को तथा शेष बिहार को प्राप्त होती है ।
(4) रिहन्द परियोजना-सोन की सहायक नदी रिहन्द पर उत्तर प्रदेश में 934 मीटर लम्बा बाँध और कृत्रिम झील 'गोविन्द बल्लभ पंत सागर' का निर्माण कर बिजली उत्पादित की जाती है । इस योजना से 30 लाख किलोवाट विद्युत उत्पन्न करने की क्षमता है। यहाँ के बिजली का उपयोग रेणुकूट के अल्यूमिनियम उद्योग, चुर्क के सीमेंट उद्योग, मध्य भारत के रेल मार्गों को विद्युतीकरण तथा हजारों नलकूपों के लिए किए जाते हैं।
(5) हीराकुण्ड परियोजना-महानदी पर उड़ीसा में विश्व का सबसे लम्बा बाँध (4801 मीटर) बनाकर 2.7 लाख किलोवाट बिजली उत्पन्न होता हैं। इससे उड़ीसा एवं आस-पास के क्षेत्र के कृषि एवं उद्योग में उपयोग किया जाता है ।
(6) चंबल घाटी परियोजना- चंबल नदी पर राजस्थान में तीन बाँध गाँधी सागर, राणाप्रतापसागर और कोटा में तीन शक्ति गृह की स्थापना कर 2 लाख मेगावाट बिजली उत्पन्न किया जा रहा है । इससे राजस्थान एवं मध्य प्रदेश को लाभ मिलता है।
(7) तुंगभद्रा परियोजना-यह कृष्णा नदी की सहायक नदी तुंगभद्रा पर आन्ध्र प्रदेश में आवस्थित दक्षिण भारत की सबसे बड़ी नदी-घाटी परियोजना है जो कर्नाटक एवं आन्ध्र प्रदेश के सहयोग से तैयार हुआ है इसकी बिजली उत्पादन क्षमता 1 लाख किलोवाट है जो सिंचाई के साथ-साथ छोटे-बड़े उद्योगों को बिजली आपूर्ति करता है।
ताप शक्ति
तापीय ऊर्जा संयंत्र भारत में विद्युत के सबसे बड़े ऊर्जा स्रोत हैं। तापीय ऊर्जा संयंत्र में, जीवाश्म ईंधन (कोयला, ईंधन तेल एवं प्राकृतिक गैस) में स्थित रासायनिक ऊर्जा को क्रमशः तापीय ऊर्जा, यांत्रिक ऊर्जा एवं अंततः विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है।
ताप विद्युत केन्द्र या ऊष्मीय शक्ति संयंत्र (thermal power station) वह विद्युत उत्पादन संयंत्र है जिसमें प्रमुख घूर्णी (प्राइम मूवर) भाप से चलाया जाता है। यह भाप कोयला, गैस आदि को जलाकर एवं पानी को गर्म करके प्राप्त की जाती है। इस संयंत्र में शक्ति का परिवर्तन (कन्वर्शन) रैंकाइन चक्र (Rankin cycle) के आधार पर काम करता है।
परमाणु ऊर्जा
जीवाश्म ईंधन की समाप्त होने वाली प्रकृति और पनविद्युत से जुड़ी समस्याओं के संदर्भ में, भारत में परमाणु ऊर्जा का विकास बेहद महत्वपूर्ण बन जाता है।
जब उच्च अनुभार वाले परमाणु विखंडित होते है तो ऊर्जा का उत्सर्जन होता है ।
यूरेनियम, थोरियम, बेरीलियम, जिरकन, एंटीमनी और ग्रेफ़ाइट महत्वपूर्ण आण्विक खनिज हैं| इस सभी खनिजों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण आण्विक खनिज यूरेनियम व थोरियम हैं| यूरेनियम की प्राप्ति प्रत्यक्षतः खनन द्वारा होता है लेकिन थोरियम की प्राप्ति प्रत्यक्ष रूप से न होकर मोनाजाइट बालू से प्राप्त से होती है|ज़
(भारतीय नाभिकीय ऊर्जा निगम लिमिटेड (एन.पी.सी.आई.एल.) परमाणु ऊर्जा विभाग की सार्वजानिक क्षेत्र की इकाई है जिस पर नाभिकीय रिएक्टरों के डिजायन, निर्माण और संचालन का दायित्व है।)
विवरण
भारत में यूरेनियम का विशाल भंडार झारखण्ड के जादूगोड़ा में है जहाँ यह 97 किलो भीटर लम्बी पट्टी में फैला है । मेघालय के जयंतिया पहाड़ी में भी इसके पर्याप्त भण्डार हैं। भारत । आन्ध्रप्रदेश में भी यूरेनियम पाया जाता है। इल्मेनाइट का भण्डार केरल, तमिलनाडु, आन्ध्रप्रदेश, उड़ीसा और महाराष्ट्र में स्थित है। ये खनिज भी समुद्रतटीय बालु में पाये जाते हैं । बेनेडियम झारखण्ड तथा उड़ीसा में मिलता है। भारत में 1955 में प्रथम आण्विक रियेक्टर मुम्बई के निकट तारापुर में स्थापित किया गया जिसका मुख्य उद्देश्य उद्योग एवं कृषि को बिजली प्रदान करना था। देश में अभी तक छ: परमाणु विद्युतगृह स्थापित हुए हैं।
भारत के किन्हीं सात परमाणु विद्युत गृह
(i) तारापुरा परमाणु विद्युत गृह-यह एशिया का सबसे बड़ा परमाणु विद्युत गृह है। यहाँ जल उबालने वाली दो परमाणु भट्टियाँ हैं जिसमें प्रत्येक कीउत्पादन क्षमता 200 मेगावाट से अधिक है । अब यहाँ यूरेनियम के स्थान पर थोरियम से प्लुटोनियम बनाकर विद्युत उत्पन्न किये जा रहे हैं क्योंकि भारत थोरियम के भण्डार में काफी समृद्ध है ।
(ii) राणाप्रताप सागर परमाणु- विद्युत गृह-यह राजस्थान के कोटा में स्थापित है यह चंबल नदी के किनारे है जिससे जल प्राप्त होता है ।यह बिजली घर कनाडा के सहयोग से बना है। इसका उत्पादन क्षमता100 मेगावाट है। फिलहाल में 235 मेगावाट की दो नई इकाइयों की शुरूआत हुई है।
(iii) कलपक्कम परमाणु- विद्युत गृह-तमिलनाडु में स्थित यह परमाणु विद्युत गृह स्वदेशी प्रयास से बना है। यहाँ 335 मेगावाट की दो रिएक्टर क्रमशः 1983&1985 में कार्य करना शुरू कर चुका है।
(iv) नरौरा परमाणु विद्युत गृह- यह उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर के पास स्थित है। यहाँ भी 235 मेगावाट की दो रिएक्टर है ।
5. ककरापारा परमाणु विद्युत गृह : गुजरात राज्य में समुद्र के किनारे स्थित इस परमाणु विद्युत गृह में 1992 से विद्युत उत्पादन प्रारम्भ हुआ है।
6. कैगा परमाणु विद्युत गृह : यह कर्नाटक राज्य के जागवार जिला में स्थित है।
7. कुडनकूलम परमाणु विद्युत गृह : इस परमाणु विद्युत गृह का निर्माण रूस के सहयोग से तमिलनाडु के तूतीकोरिन बन्दरगाह के निकट किया गया है। वर्ष 2013 में इसका उत्पादन 1000 मेगावाट के साथ 2 यूनिट के साथ चालू है ।
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