
अध्याय 2 : संसाधन
प्राकृतिक संसाधन : भू संसाधन
भू संसाधनों का प्रयोग (Use
of Land Resources)
प्राकृतिक संसाधनों में भू संसाधन सबसे महत्वपूर्ण है, क्योंकि भूमि हमारे जीवन को आधार प्रदान करती है। हम भूमि पर रहते
हैं, इसपर खेती करते हैं, इसपर
मकान बनाते हैं और हमारी जरूरत के लिये अधिकांश संसाधन भूमि से ही प्राप्त होते
हैं। इसलिए भू संसाधन के इस्तेमाल के लिये सही योजना की आवश्यकता है। भारत में कई
तरह की भूमि है; जैसे कि पहाड़, पठार, मैदान और द्वीप।
भारत में भूमि का भौतिक स्वरूप
पहाड़: भारत की कुल भूमि का 30% पहाड़ों के रूप में है। भारत की कई नदियों का उद्गम इन्हीं पहाड़ों में है। पहाड़ों के कारण ही बारहमासी नदियों में जल का प्रवाह बना रहता है। ये नदियाँ अपने साथ उपजाऊ मिट्टी लाती हैं और मैदानों का निर्माण करती हैं। इन नदियों से मिलने वाला पानी हमारे खेतों की सिंचाई करता है। इन्हीं नदियों से हमें पीने का पानी भी मिलता है।
मैदान: भारत की कुल भूमि का 43%
मैदान के रूप में है। मैदान की भूमि समतल होती है और इसलिए अधिकतर आर्थिक क्रियाओं
के लिये अनुकूल होती है। मैदान की जमीन खेती के लायक होती है इसलिये मैदानों में
घनी आबादी होती है। मकान और कल कारखाने भी समतल भूमि में आसानी से बनाये जा सकते
हैं।
पठारः भारत की कुल भूमि का 27% पठारों के रूप में है। पठारों से हमें कई प्रकार के खनिज, जीवाष्म ईंधन और वन संपदा मिलती है।

भू उपयोग का बदलता स्वरूप
1. वन विस्तार
2. कृषि के लिए अनुपलब्ध भूमिः कृषि के लिए अनुपलब्ध भूमि दो
प्रकार की है।
a. बंजर और कृषि अयोग्य भूमि
b. गैर कृषि प्रयोगों के लिए लिए भूमि: जैसे
मकान सड़क , कारखाने आदि के लिए भूमि ।
3. परती भूमि के अतिरिक्त अन्य कृषि अयोग्य भूमि
a. स्थाई चारागाहें तथा अन्य गोचर भूमि
b. विविध वृक्षों, वृक्ष फसलों तथा उपवनों के अधीन भूमि (( जो शुद्ध बोए गये क्षेत्र
में शामिल नहीं हैं)
c. कृषि योग्य बंजर भूमि जहाँ पाँच से अधिक
वर्षों से खेती नहीं हुई हो।
4. परती भूमिः 2 प्रकार के होते है l
a. वर्तमान परती (जहाँ एक वर्ष या उससे कम
समय से खेती नहीं हुई हो)
b. पुरातन परती (जहाँ एक से पाँच वर्षों से
खती नहीं हुई हो)
5. शुद्ध (निवल) बोया गया क्षेत्र: एक वर्ष में एक बार से अधिक
बोये गये खेत को यदि शुद्ध बोये गये क्षेत्र में जोड़ दिया जाए तो उसे सकल बोया गया
क्षेत्र कहते हैं।
भारत में भू उपयोग का प्रारूप
भू
उपयोग का प्रारुप भौतिक और मानवीय कारकों पर निर्भर करता है। भौतिक कारक के उदाहरण
है; जलवायु, भू
आकृति, मृदा के प्रकार, आदि।
मानवीय कारक के उदाहरण हैं; जनसंख्या, टेक्नॉलोजी, कौशल, जनसंख्या घनत्व, परंपरा, संस्कृति, आदि।
भारत का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 32.8 लाख वर्ग किमी है। लेकिन इसके
93% भाग के ऑँकड़े ही हमारे पास उपलब्ध हैं। इसका कारण ये है कि असम को छोड़कर
पूर्वोत्तर राज्यों के आँकड़े नहीं लिए गये हैं। कुछ अपरिहार्य कारणों से पाकिस्तान
और चीन के कब्जे वाली जमीन का सर्वेक्षण भी नहीं हो पाया है। स्थाई चारागाहों के
अंतर्गत भूमि कम हो रही है, जिससे
पशुओं के चरने में समस्या उत्पन्न होगी। यदि परती भूमि और अन्य भूमि को भी शामिल
कर लें तो भी शुद्ध बोये गये क्षेत्र का हिस्सा 54% से अधिक नहीं है। परती भूमि के
अलावा बचने वाली भूमि की गुणवत्ता या तो अच्छी नहीं है या उसपर खेती करना महंगा
साबित हो सकता है। इसलिए इस प्रकार की भूमि पर दो साल में केवल एक या दो बार ही
खेती हो पाती है। शुद्ध बोये जाने वाले क्षेत्र का प्रारूप एक राज्य दूसरे राज्य में बदल जाता है। यह उस राज्य की भौगोलिक संरचना पर
निर्भार करता है। पंजाब में 80% क्षेत्र शुद्ध बोये जाने वाले क्षेत्र के अंतर्गत
आता है, क्योंकि यहाँ समतल भूमि है। अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, मणिपुर
और अंदमान निकोबार द्वीप समूह में यह घटकर 10% रह जाता है क्योंकि इन राज्यों की
भूमि समतल नहीं है।
राष्ट्रीय वन नीति (1952) के अनुसार पारिस्थितिकी में संतुलन बनाए रखने के लिए कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 33% हिस्सा वन के रूप में होना चाहिए। लेकिन भारत में वन का क्षेत्र इससे कहीं कम है। ऐसा इसलिये हो रहा है कि यहाँ गैरकानूनी ढंग से जंगल की कटाई हो रही है और निर्माण कार्य में तेजी आई है। जंगल के आसपास एक बड़ी आबादी रहती है जो वन संपदा पर निर्भर है । भूमि प्रबंधन और संरक्षण के समुचित उपायो के बगैर ही भूमि और लंबे समय से उपयोग हो रहा है । जिस कारण भू निम्नीकरण हो रहा है । इससे कृषि पैदावार में कमी आई है जिसका समाज पर बुरा असर हो रहा है। पर्यावरण पर भी गंभीर खतरे उत्पन्न हो गये हैं।
हमारे पूर्वजों ने जमीन का दोहन नहीं किया था । इसलिये हमें विरासत
में मिलने वाली जमीन अच्छी स्थिति में थी। अब हमसे भी ऐसी ही उम्मीद की जा रही है कि
हम आने वाली पीढ़ियों के लिये अच्छी स्थिति में जमीन रहने दें। हाल के दशकों में
तेजी से बढ़ती जनसंख्या के कारण भू संसाधन का दोहन भी तेजी से बढ़ा है। इससे भूमि
का तेजी से निम्नीकरण हो रहा है। मानव गतिविधियों के दुष्परिणामों ने प्राकृतिक
शक्तियों को और भयानक बना दिया है जिससे भू संसाधन का निम्नीकरण हो रहा है। ताजा
आँकड़ों के अनुसार भारत में लगभग 13 करोड़ हेक्टेअर भूमि निम्नीकृत है। इसमें से
लगभग 28% वनों के अंतर्गत आता है और 28% जल अपरदित क्षेत्र में आता है। निम्नीकृत
भूमि का बाकी हिस्सा लवणीय और क्षारीय हो चुका है।
भू निम्नीकरण के कुछ मुख्य कारण हैं-
वनोन्मूलन, अति
पशुचारण, खनन, जमीन
का छोटे-छोटे टुकड़ों में विभाजन, आदि।

झारखंड, छत्तीसगढ़, उड़ीसा और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में खनन कार्य समाप्त हो जाने के बाद खानों को वैसे ही छोड़ दिया जाता है। वहाँ पर या तो मलबे के देर होते हैं या गहरी खाइयाँ बन जाती हैं। ऐसी जमीन किसी काम की नहीं रह जाती है। इन राज्यों में खनन के अलावा वनोन्मूलन के कारण भी भूमि का निम्नीकरण तेजी से हुआ है। उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में अत्यधिक सिंचाई के कारण पानी की कमी हो रही और जलजमाव के कारण भूमि का अम्लीकरण या क्षारीकरण हो रहा है। बिहार, असम और अरुणाचल प्रदेश जैसे राज्यों में बाढ़ की वजह से भूमि का निम्नीकरण हो रहा है। मानव गतिविधियों के दुष्परिणामों के कारण बाढ़ अब पहले से अधिक भयानक होने लगी है। जिन राज्यों में खनिजों का परिष्करण होता है (चूना पत्थर तोड़ना,मेंट उत्पादन, आदि) वहाँ भारी मात्रा में धूल का निर्माण होता है। इस धूल के कारण मिट्टी दवारा जल सोखने की प्रक्रिया में बाधा पड़ती है जिससे भूमि का निम्नीकरण हो रहा है।
भू निम्नीकरण से कई समस्याएँ उत्पन्न हो
रही हैं; जैसे बाढ़, घटती
उपज, आदि। इससे घरेलू सकल उत्पाद घट जाता है और देश को कई आर्थिक
समस्याओं से जुझना पड़ता है।
भू संसाधनों के संरक्षण के उपायः
निम्नीकरण को निम्न तरीकों से रोका जा सकता है:
1.वनारोपण चारागाहों का समुचित प्रबंधन
2. कॉटेदार झाड़ियाँ लगाकर
3. रेतीले टीलों स्थिर बनाना
4. बंजर भूमि का उचित प्रबंधन
5. सिंचाई का समुचित प्रबंधन
6. फसलों की सही तरीके से कटाई
7. खनन प्रक्रिया पर नियंत्रण
8. खनन के बाद भूमि का समुचित
प्रबंधन
9. औद्योगिक जल के परिष्करण के बाद जल का विसर्जन
10. सड़कों के किनारों पर वृक्षारोपण
11. वनोन्मूलन की रोकथाम
नोट - बारहवी के भूगोल के छात्रों के लिए भी यह नोट्स महत्वपूर्ण है l
समाप्त
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