गैर – पारंपरिक शक्ति के श्रोत
सौर ऊर्जा- सूर्य के ताप से प्राप्त ऊर्जा को सोर ऊर्जा कहते हैं। भारत में सौर ऊर्जा प्राप्त करने की संभावनायें बहुत व्यापक है। फोटो वोल्यईक प्रौद्योगिकी सूर्य प्रकाश को सीधे विद्युत में बदलती हैं। भारत का सबसे बड़ा सौर्य संयत्र भुज के पास माधोपुर में स्थापित किया गया। यह सामान्य हीटरें, कुलर, प्रकाश और उपकरणों में अधिक उपयोग की जाती है। यह कम लागत वाला पर्यावरण के अनुकूल तथा निर्माण में होने के कारण अन्य ऊर्जा के सोतों की अपेक्षा ज्यादा लाभदायक है। क्षार मरूस्थल देश में सौर ऊर्जा का सबसे बड़ा केन्द्र बन सकता है । पवन ऊर्जा-पवन ऊर्जा के उत्पादन में भारत विश्व में पाँचवा स्थान है । देश का सबसे बड़ा पवन कार्य तमिलनाडु मुंत्पनडल में है। भारत में पवन ऊर्जा की कुल संभावित क्षमता 50,000 मेगावाट आँकी गयी है। 31 मार्च 2006 तक देश मे पवन ऊर्जा की स्थापित क्षमता 5300 मेगावाट है । एशिया का सबसे बड़ा पवन ऊर्जा कुछ जिले के लांबा में मांडली है।
पवन ऊर्जा पवन चक्कियों की सहायता से प्राप्त की जाती है । पवन चक्की पवन की गति से चलती है और टरवाइन को चलाती है। इससे गति ऊर्जा को विद्यत ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है । पवन ऊर्जा के लिए राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, तथा कर्नाटक में अनुकूल परिस्थितियाँ विद्यमान है ।
भूतापीय ऊर्जा-यह ऊर्जा पृथ्वी के उच्च ताप से प्राप्त किया जाता है। जब भूगर्भ से मैग्मा निकलता है तो अपार ऊर्जा मुक्त होता है। गीजर कूपों से निकलने वाले गर्म जल तथा गर्म झरने से भी शक्ति प्राप्त किया जा सकता है। हिमाचल प्रदेश के मणिकरण में भूतापीय ऊर्जा संयत्र स्थापित है तथा दूसरा लद्दाख में पुरगाषाटी में स्थित है ।
बायोगैस- आ्रामीण क्षेत्रों में कृषि अपशिष्ट पशुओं और मानव जनित के उपयोग से घरेलू उपयोग हेतु बायोगैस उत्पन्न की जाती है। जैविक पदार्धो के अपमटन से गैस उत्पन्न होती है। पशुओं के गोबर से गैस तैयार करने वाले संघंत्र को भारत में गोबर-गैस प्लांट के नाम से जाना जाता है। इससे किसानों को ऊर्जा तथा उर्वरक की प्राप्ति होती है।
ज्वारीय ऊर्जा-समूद्री ज्वार में जल गतिशील होता है। अतः इसमें अपार ऊर्जा रहती है। भारत में समुद्री ज्वार से 40,000 मेंगावाट विद्युत के उत्पादन की क्षमता है। यद्यपि देश के तट रेखा की लम्बाई 6100 km हैं । परन्तु ज्वार ऊर्जा के उत्पादन की संभावनाएँ कम है। खम्भात की खाड़ो सबसे अनुकूल है । इसके अलावे हुगली ज्वारनदमुख सुंदरवन इसके लिए अनुकूल हैं ।
शक्ति संसाधन के संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण कदम
ऊर्जा संकट एक विश्वव्यापी समस्या का रूप ले चुका है। इस परिस्थिति में संरक्षण हेतु अनेक प्रयास किए जा रहे हैं ।
(i) ऊर्जा के प्रयोग में मितव्ययिता- ऊर्जा संकट से बचने के लिए प्रथमतः क्षमता आपर्ति ऊर्जा के उपयोग में मितव्ययिता बरती जाए । इसके लिए तकनीकी विकास आवश्यक है। ऐसे मोटर गाड़ियों का निर्माण भी कम तेल में ज्यादा चलते हैं । अनावश्यक बिजली का उपयोग, पर रोक कर हम ऊर्जा की बड़ी मात्रा का बचत कर सकते हैं ।
(ii) ऊर्जा के नवीन वैकल्पिक साधनों का उपयोग-वैकल्पिक ऊर्जा में तथा परमाणु पारम्परिक एवं गैर पारम्परिक दोनों ऊर्जा है । इनमें से कुछ सतत् नवीकरणीय है तो कुछ समापतीय है। वैकल्पिक ऊर्जा में जल विद्युत, पवन ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा, भूतापीय ऊर्जा, सौर ऊर्जा आदि का विकास कर शक्ति के साधनों को संरक्षित करने का दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम होगा । अत: इसके स्थान पर वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों का प्रयोग अपरिहार्य हो गया है ।
(iii) ऊर्जा के नवीन क्षेत्रों की खोज-ऊर्जा संकट सामाधान की दिशा में परम्परागत ऊर्जा के नए क्षेत्रों का अन्वेषण किया जाए। अरब सागर, गोदावरी, कृष्णा क्षेत्र, राजस्थान क्षेत्र आदि में पेट्रोलियम तथा प्राकृतिक गैस केक्षेत्र प्राप्त हुए है। इसके लिए सुदूर संवेदी सूचना प्रणाली का भी उपयोग हो रहा है।
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