अध्याय- 07 उपभोक्ता जागरण एवं संरक्षण

 


अध्याय- 07

उपभोक्ता जागरण एवं संरक्षण




व्यक्ति जब कोई वस्तु या सेवा अपने उपभोग या उपयोग के लिए खरीदता है, तो वह, उपभोक्ता कहलाते हैं उपभोक्ता बाजार व्यवस्था का प्रमुख अंग होता है ।
हमारे बाजार व्यवस्था में उपभोक्ता का स्थान सर्वोपरि है, यदि उपभोक्ता ना रहे तो उत्पादित वस्तुओं को मांगने वाला ही नहीं होगा। उत्पादन के समस्त क्रिया उपभोक्ता के द्वारा ही संचालित होती हैं, क्योंकि उत्पादक के रूप में हम पहले वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन करते हैं, और फिर हम अपनी आवश्यकता अनुसार उसी वस्तु और सेवाओं से अपनी आवश्यकता की पूर्ति करते हैं । बाजार व्यवस्था में उत्पादक और उपभोक्ता दोनों ही होते हैं और दोनों का अलग अलग महत्व होता है l  वर्तमान युग में उपभोक्ताओं में वस्तु के मूल्य निर्माण एवं गुणवत्ता के प्रति जागरूक बनाया जाता है, उसे उपभोक्ता जागरण के रूप से जानते हैं l
1. उपभोक्ता जागरण 
मनुष्य को अपना जीवन जीने के लिए ढेर सारी वस्तु और सेवा की आवश्यकता होती है। और उन् आवश्यकता पूर्ति के लिए भिन्न भिन्न वस्तुओं और सेवाओं का क्रय करता है, इस प्रकार हम यह भी कह सकते हैं कि मानव किसी न किसी रूप में उपभोक्ता है और एक उपभोक्ता प्रतिदिन विभिन्न वस्तुओं और सेवाओं के संपर्क में आता है लेकिन कई बार, कई स्तर पर उनका शोषण हो जाता है जिसका प्रमुख कारण उपभोक्ता को अपने अधिकार का ज्ञान नहीं होना और जागरूकता का अभाव। उपभोक्ता का अधिकार है कि वह जिस वस्तु या सेवा का उपभोग कर रहा है उसका गुण मात्रा वस्तु बनाने में प्रयुक्त तत्व इससे होने वाले प्रभाव तथा सही मूल्य तथा वजन या मात्रा की जांच , आदि का पूर्ण जानकारी प्राप्त करें। 
आज भूमंडलीकरण के इस दौर में उपभोक्ता जहां एक राष्ट्र से नहीं वरन दूसरे देशों के बने वस्तुओं तथा सेवाओं का लाभ उठा रहे हैं तो उनको जागरूक होना परम आवश्यक है। 
अपने अधिकारों के प्रति जागरुक नहीं होने के कारण उपभोक्ता प्राय: शोषण के शिकार हो जाते हैं उनके हितों की रक्षा के लिए उन्हें जागरुक बनाना आवश्यक है,। उपभोक्ता जागरण हेतु विभिन्न नारे “जागो ग्राहक जागो” उपभोक्ता जागरण का सर्वाधिक प्रचलित नारा है इसके अतिरिक्त कुछ अन्य ना रहे हैं “एक सजग उपभोक्ता सुरक्षित उपभोक्ता” “अपने अधिकारों को जानो ग्राहकों सावधान रहो” “उपभोक्ता के रूप में अपने अधिकारों की रक्षा करो” “अपने अधिकारों को पहचानो सदर उपभोक्ता ही सुरक्षित उपभोक्ता है”. 
2. उपभोक्ता शोषण 
उपभोक्ता शोषण का अभिप्राय उत्पादक अथवा विक्रेता द्वारा उपभोक्ताओं को बेची गई वस्तुओं की गुणवत्ता मात्रा शुद्धता एवं मूल्य आदि से संबंधित अनुचित व्यापार व्यवहार है। 
हमारे उपभोक्ता का एक नहीं कई प्रकार से शोषण किया जाता है।कभी माल् या सेवा की घटिया किस्म के कारण तो कभी कम नापतोल के कारण कभी नकली वस्तुएं उपलब्ध होने के कारण कभी वस्तुओं की कालाबाजारी या जमाखोरी के कारण तो कभी स्तरहीन विज्ञापनों के कारण उपभोक्ता के हितों की अनदेखी की जा रही है । 
आजकल उत्पादकों के साथ प्रलोभन देना एक प्रमुख समस्या बनी हुई जैसे एक वस्तु खरीदने पर एक वस्तु मुक्त पुरानी वस्तुओं के बदले नयी बस्तू , नहाने के साबुन में सोने का लॉकेट मिलेगा, चाय की पैकिंग में डायमंड मिलेगा, अन्य वस्तुओं के साथ स्कूटर फ्रीज TV मोबाइल आदि लाखों का इनाम का लालच। 
उपभोक्ता शोषण के प्रमुख कारक 
*मिलावट की समस्या महंगी वस्तुओं में अन्य चीजें मिलावट करके उपभोक्ताओं का शोषण होता है l
*कम तौलने द्वारा वस्तुओं के माप में हेरा फेरा करके भी उपभोक्ता का शोषण होता है l
*कम गुणवत्ता वाली वस्तु उपभोक्ता को धोखे से अच्छी वस्तुओं के स्थान पर कम गुणवत्ता वाली वस्तु देकर शोषण करना । 
*ऊंची कीमत द्वारा ऊंची कीमत वसूल करके भी उपभोक्ता का शोषण किया जाता है l
*डुप्लीकेट वस्तुएं सही कंपनी का डुप्लीकेट वस्तुएं प्रदान करके उपभोक्ता का शोषण होता है। 
भारत में उपभोक्ताओं की शोषण की समस्या बहुत गंभीर है। क्यों? 
भारत में उपभोक्ताओं के शोषण की समस्या बहुत गंभीर है, हमारे देश के अधिकांश उपभोक्ता अशिक्षित है तथा इसकी आज का अस्तर बहुत नियम है इसके फलस्वरुप हुए अपने अधिकारों के प्रति जागरुक नहीं होते। देश के आवश्यक उपभोक्ता पदार्थों का अभाव होने के कारण उंहें अनेक वस्तुओं और सेवाओं को अधिक मूल्य का पर खरीदना पड़ता है अथवा उनके उपयोग से वंचित रह जाना पड़ता है। भारत उपभोक्ता संघ का प्रभाव है उपभोक्ता एवं व्यापारी इसका अनुचित लाभ उठाकर उपभोक्ताओं का कई प्रकार से शोषण करते हैं भारत जैसे विकासशील देशों में कानूनी प्रक्रिया बहुत जटिल और खर्चीली है इसके फलस्वरुप भी इन देशों में उपभोक्ता का शोषण होता है। 

भारतीय मानक ब्यूरो (Bureau of Indian standards Institutions, BIs) :
• इसे जिसे पहले भारतीय मानक संस्थान ( indian Standards Institutions, Ist) के नाम से जाना जाता था। इसका मुख्य कार्य विभिन्न वस्तुओं और सेवाओं का मानक तैयार कर प्रमाणन योजना चलाना है।
औद्योगिक एवं उपभोक्ता वस्तुओं के लिए ISI मार्क का प्रयोग होता है।
कृषि उत्पादों के लिए एगमार्क का प्रयोग होता है।
 सोने और जेवरों को हॉलमार्क से पहचाना जाता है।
आधुनिक समय में उपभोक्ता के शोषण की समस्या क्यों गंभीर हो गई है
प्राचीन काल से भी उपभोक्ता या विक्रेता वस्तुओं का शोषण करते थे परंतु व्यापार का विस्तार होने के साथ ही आधुनिक समय में यह समस्या अत्यंत गंभीर हो गई है आज अखबार रेडियो टेलीविज़न आदि प्रचार एवं विज्ञापन के कई साधन उपलब्ध हैं उत्पादक इन पर बहुत अधिक धन ख़र्च करते हैं, जिसका भार उपभोक्ताओं को वहन करना पड़ता है। ग्राहको को आकृष्ट करने के लिए उत्पादक प्राय: अपनी वस्तुओं का भ्रामक प्रचार करते हैं । तथा अपनी वस्तुओं की गलत या अधूरी जानकारी देते हैं। बाजार में एकाधिकार एवं अपूर्ण प्रतियोगिता की स्थिति होने के कारण भी उपभोक्ताओं का शोषण होता है ऐसी स्थिति में वस्तुओं की आपूर्ति पर बहुत थोड़े से उत्पादकों या विक्रेताओं का नियंत्रण रहता है और वह बाजार को अपनी इच्छा अनुसार प्रभावित कर सकते हैं । 

 → उपभोक्ता संरक्षण एवं सरकार 

उपभोक्ता अधिकारों की सुरक्षा संबंधी अधिनियम 
भारत सरकार ने उपभोक्ताओं के अधिकारों की सुरक्षा के लिए समय-समय पर कई अधिनियम या कानून लागू किए हैं इससे इसमें नापतोल मानक अधिनियम, खाद्य मिलावट निवारण अधिनियम, आवश्यक वस्तु अधिनियम आदि महत्वपूर्ण है। 

उपभोक्ताओं के हित की रक्षा के लिए सरकार ने सन 1986 में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम पारित किया जो उपभोक्ता संरक्षण की दृष्टि से सर्वाधिक महत्वपूर्ण है यह एक अत्यंत प्रगतिशील और व्यापक कानून है इस अधिनियम के सभी प्रावधान जुलाई 1987 से प्रभावी हुए हैं उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम सभी प्रकार के वस्तुओं और सेवाओं के विक्रय पर लागू होता है अक्टूबर 2005 में भारत सरकार ने सूचना के अधिकार के नाम से एक अन्य अधिनियम पारित किया है जो जनहित तथा उपभोक्ता अधिकारों के संरक्षण के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है। 

· उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 
उपभोक्ताओं को दिए गए अधिकारो सुरक्षा एवं उनके शोषण को रोकने के लिए भारत सरकार ने 1986 में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम पारित किया है इस अधिनियम में उपभोक्ताओं के संरक्षण के लिए व्यापक प्रावधान किए गए हैं इसके अंतर्गत अनुचित व्यापार तरीकों का प्रयोग करने वाले उत्पादकों तथा विक्रेताओं को दंड देने के स्थान पर उपभोक्ताओं की क्षतिपूर्ति की व्यवस्था की गई है इसके लिए राष्ट्रीय राज्य एवं जिलास्तर पर एक अर्ध न्यायिक तंत्र गठित किया गया है राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय आयोग राज्य स्तर पर राज्य आयोग तथा जिला स्तर पर जिला अदालत कहा जाता है इसका मुख्य उद्देश्य उपभोक्ताओं की शिकायतों को शीघ्रता से कम खर्च में दूर करना है यह अधिनियम वस्तुओं और सेवाओं के क्रय विक्रय पर लागू होता है 

· उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 में उपभोक्ताओं को दिए गए अधिकारों का वर्णन 
उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए सरकार ने 1986 में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम पारित किया जो उनकी सुरक्षा की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है
उपभेक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 6 के अंतर्गत उपभोक्ताओं को कुछ अधिकार दिये गये हैं हैं -
1. सुरक्षा का अधिकार (वस्तुओं या सेवाओं से शरीर या संपत्ति को हानि से बचाने के लिए यह अधिकार दिया गया है)।
2. सूचना पाने का अधिकार (वस्तुओं या सेवाओं को खरीदते समय उससे संबंधित जानकारी, जैसे - मूल्य, इस्तेमाल करने की अवधि, गुणवत्ता, अवयवों की सूची इत्यादि) 
3. चुनाव या पसन्द करने का अधिकार (वस्तुओं के ब्रांड, किस्म, गुण, रंग इत्यादि पसन्द करनेका अधिकार) 
4. क्षतिपूर्ति का अधिकार (खरीदी गई वस्तु ठीक ढंग की नहीं होने पर उपभोक्ता को मुआवजे या क्षतिपूर्ति का अधिकार)
5. उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार (धोखाधड़ी से बचने के लिए एवं एक सजग उपभोक्ता बनने के लिए शिक्षा का अधिकार)

· उपभोक्ताओं के अधिकार की रक्षा एवं हितों के संरक्षण के लिए सरकारी स्तर पर केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण परिषद एवं राज्य स्तर पर राज्य उपभोक्ता संरक्षण परिषद की स्थापना की गई 

· उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत उपभोक्ताओं को उनकी शिकायतों के निवारण के लिए व्यवस्था दी गई है जिसे तीन स्तर पर स्थापित किया गया है राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय आयोग, राज्य स्तर पर राज्य स्तरीय आयोग, जिला स्तर पर जिला मंच (फोरम)। यह न्याय व्यवस्था उपभोक्ताओं के लिए बहुत ही उपयोगी एवं व्यवहारिक है इस ग्रुप व्यवस्था से उपभोक्ताओं को जल्दी एवं सस्ता न्याय प्राप्त होता है एवं समय एवं धन की बचत होती है पहले शिकायत जिला फोरम में की जाती है शिकायतकर्ता अगर संतुष्ट नहीं है तो मामले को राज्य फोरम फिर राष्ट्रीय फोरम में ले जा सकता है, अगर उपभोक्ता राष्ट्रीय फोरम से भी संतुष्ट नहीं होता है तो आदेश के 30 दिनों के अंदर उच्चतम न्यायालय में अपील कर सकता है। 

शिकायत कहाँ करें?
1. जिला फोरम : यदि क्षतिपूर्ति की राशि 20 लाख रूपये तक हो।
2. राज्य आयोग यदि क्षतिपूर्ति की राशि 20 लाख से 1 करोड़ तक हो 
3. राष्ट्रीय आयोग यदि क्षतिपूर्ति की राशि 1 करोड़ से अधिक हो
शिकायत दर्ज करने का तरीका 
उपभोक्ताओं को शिकायत दर्ज कराने के लिए कोई शुल्क नहीं देना पड़ता है। इस प्रकार की कोई भी शिकायत व्यक्तिगत रूप से या डाक द्वारा भेजी जा सकती है। शिकायत को सादे कागज पर लिखकर निम्नलिखित विवरण जैसे शिकायतकर्ताओं तथा विपरीत पार्टी का नाम का विवरण तथा पता, शिकायत से संबंधित तथ्य एवं यह सब कब हुआ और कहां हुआ, शिकायत में उल्लेखित आरोपों के समर्थन में दस्तावेज, शिकायत पर शिकायतकर्ताओं अथवा उसके प्राधिकृत एजेंट के हस्ताक्षर होने चाहिए। 

· उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत उपभोक्ताओं को निम्नलिखित राहत देने का प्रावधान है 
i. विक्रय की गई वस्तु या सेवा को बदलना 
ii. विक्रय की जाने वाली वस्तुओं की त्रुटि को दूर करना 
iii. वस्तुओं या सेवाओं के लिए अदा की गई रकम को वापस लौटाना 
iv. उपभोक्ताओं द्वारा सहन की गई हानि की क्षतिपूर्ति करना 

· विश्व के अन्य देशों की तरह हमारे देश में भी कुछ ऐसी संवैधानिक संस्थाओं की स्थापना की गई है जो उपभोक्ताओं के इस शोषण का निराकरण करती है मुख्य रूप से राष्ट्रीय राज्य एवं निम्न प्रशासकीय स्तर पर 2 संस्थाएं महत्वपूर्ण है जो लोगों के जीवन और उपयोग के अधिकार को संरक्षण प्रदान करती है 

मानवाधिकार आयोग :
यह राष्ट्रीय स्तर की उच्चतम संस्था है । यह मानवीय अधिकारों की रक्षा एवं उनके हितों की सुरक्षा प्रदान करती है।
सूचना आयोग :
उपभोक्ताओं को वस्तुओं एवं सेवाओं से संबंधित सूचना प्राप्त कराने के लिए गठित आयोग।
. राज्य स्तर पर राज्य सूचना आयोग।
 राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय सूचना आयोग।
सूचना का अधिकार क्या है 
सूचना का अधिकार आम आदमी का अधिकार संपन्न बनाने हेतु सरकार द्वारा महत्वपूर्ण कदम है सूचना का अधिकार का तात्पर्य है कोई भी व्यक्ति अभिलेख ईमेल आदेश दस्तावेज नमूने और इलेक्ट्रॉनिक आंकड़े आदि के रूप में ऐसी प्रत्येक सूचना प्राप्त कर सकता है जिसकी उसे आवश्यकता है जिसके लिए आवेदन संबंधित लोक सूचना अधिकारी के समक्ष आवेदन करेंगे जिसकी सूचना 30 दिनों में विशेष परिस्थिति में 48 घंटे संबंधित व्यक्तियों को सूचना उपलब्ध करवाया जाएगा। 
एक उपभोक्ता के रुप में बाजार में अपने कर्तव्य का वर्णन करें 
उपभोक्ताओं के संरक्षण के लिए प्रायः सभी देशों में अवश्य कानून बनाए गए हैं परंतु उपभोक्ताओं के भी कुछ कर्तव्य हैं तथा इनके शोषण को रोकने के लिए आवश्यक है कि वे अधिकारों के साथ ही अपने कर्तव्यों के प्रति भी सचेत हो एक उपभोक्ता के रुप में हमारे लिए निम्नलिखित कर्तव्य को ध्यान में रखा जाना आवश्यक होता है 
a. उपभोक्ता को ना केबल वस्तुओं के क्रय विक्रय की व्यवसायिक पक्षों की जानकारी होनी चाहिए वर्णन स्वास्थ्य एवं सुरक्षा की भी जानकारी आवश्यक है उन्हें कोई भी सामान खरीदते समय उनकी गुणवत्ता और शुद्धता के प्रति पूर्णतया स्वस्थ हो जाना चाहिए यदि यह सामान्य सेवा की गारंटी दीजिए गई है तो गारंटी कार्ड को पूरा करा कर उसे रख लेना चाहिए. 
b. जहां कहीं भी संभव हो खरीदे गए सामान या सेवा की रसीद अवश्य लेनी चाहि 
c. आने का स्थानों पर सरकार अथवा अन्य स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा उपभोक्ता संघ की स्थापना की गई है उपभोक्ता को इस के कार्यक्रम में रुचि लेनी चाहिए। 
d. एक उपभोक्ता द्वारा क्रय की जाने वाली वस्तु है कितनी ही कम मूल्य की क्यों ना हो उसे अपनी वास्तविक समस्या की शिकायत अवश्य करनी चाहिए 
e. उपभोक्ताओं को अपने अधिकारों की जानकारी होनी चाहिए और आवश्यकता पड़ने पर इसका प्रयोग भी करना चाहिए 
उपभोक्ताओं की जागरूकता और सक्रिय भागीदारी से ही उन्हें उत्पादकों और व्यापारियों के शोषण से बचाया जा सकता है। 
नोट :-  इस नोट्स को लिखने के लिए कई किताबो को सन्दर्भ में रखा गया है l किसी भी तथ्यों में शंका हो तो हमारे whatsapp नंबर 9060219579 पर संपर्क करें l 

Susmita Mishra

PATNA, BIHAR