प्राकृतिक संसाधन : वन और वन्य जीव (अध्याय 5 : संसाधन)

 


अध्याय 5 : संसाधन
प्राकृतिक संसाधन : वन और वन्य जीव

वन नवीकरणीय संसाधन है, जो भोजन, आश्रय, वन्यजीवन आवास, ईंधन, और दैनिक आपूर्ति जैसे औषधीय सामग्री और कागज प्रदान करते हैं। वन, पृथ्वी की CO2 आपूर्ति और विनिमय को संतुलित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं,

वन संसाधन से लाभ :

1. प्रत्यक्ष लाभ

2. अप्रत्यक्ष लाभ

प्रत्यक्ष लाभ: लकड़ी, ऑक्सीजन, इंधन, चारा , फल-फूल, कागज, दिया सलाई आदि।

अप्रत्यक्ष लाभ: वर्षा के लिए, स्वास्थ्य के लिए मनोरंजन के लिए मृदा अपरदन की रोकथाम, वायु व ध्वनी प्रदूषण के रोकथाम, वन हरित गृह प्रभाव को रोकते है।

वन्य पशु किस प्रकार लाभकारी –

उत्तर-वन्य पशुओं से समाज को अनेक लाभ हैं। ये न केवल देखने में सुन्दर हैं और मनोरंजन के साधन हैं या शिकार के उपयुक्त हैं, बल्कि कृषि के लिए भी लाभकारी हैं, छोटे जानवर जो फसलों को नुकसान पहुँचाते हैं मांसाहारी वन्य पशु उन्हें खाकर फसलों को नुकसान होने से बचाते हैं। वन्य पशुओं से कीमती पदार्थों की भी प्राप्ति होती है जो किसी देश की प्रगति के लिए लाभकारी होती हैं। वन्य पशु जैसे हाथी, बंदर का उपयोग सर्कसः में किया जाता है, जो मनोरंजन के साधन हैं। हाथी के दाँत से अनेक प्रकार की कीमती चीजों का निर्माण किया जाता हैं। वन्य पशु पारिस्थितिकी-तंत्र में संतुलन बनाये रखने में सहायक होते हैं, अतः वन्य पशुओं से बहुत अधिक लाभ हैं।

याद  रहे

हमारे वन उस बड़े भूभाग को कहते हैं जो पेड़ पौधे एवं झाड़ियों द्वारा आच्छादित होते हैं , वे वन जो स्वत: विकसित होते हैं उसे प्राकृतिक वन और जो मानव द्वारा विकसित किए जाते हैं वह मानव निर्मित वन अर्थात वानिकी कहलाते हैं वन जैव विविधता का अवास होता है.

वन और वन्य जीव के साधनों के प्रकार और वितरण

वन विस्तार के नजरिए से भारत विश्व का दसवां देश है यहां करें 68 करोड़ हेक्टेयर भूमि पर वनो का विस्तार है।   हमारे भारत में वनाच्छादित क्षेत्रों के संबंध में मध्यप्रदेश देश के 11.22 प्रतिशत वनों के साथ प्रथम स्थान पर है। इसके बाद अरुणाचल प्रदेश 9.75 छत्तीसगढ़ 8.09 महाराष्ट्र 7.33 उड़ीसा 7.00 प्रतिशत के साथ क्रमशः दूसरे तीसरे चौथे और पांचवें स्थान पर है।  भारत के कुल वनों का 60.11 प्रतिशत क्षेत्र केवल आदिवासी जिले में है । भारत के पूर्वोत्तर राज्य देश के लगभग एक चौथाई वन के स्वामी हैं। वनों के विकास के संदर्भ में चीन का स्थान पहला और भारत का स्थान दूसरा है। बिहार विभाजन के बाद बिहार वन संपदा से वंचित हो गया है, अब इसके पास केवल 6764.१4 हेक्टेयर क्षेत्र में ही वन बचे हैं। 38 जिलों में 17 जिलों में तो वन  ही नहीं।

वृक्षों के घनत्व के आधार पर वनों का वर्गीकरण

हमारे हमारे वृक्षों के घनत्व के आधार पर वनों को 5 वर्गों में बांटा गया है

अत्यधिक सघन वन- भारत में इस प्रकार के वन का विस्तार 54.6 लाख हेक्टेयर भूमि पर है जो कुल भौगोलिक क्षेत्र का 1.66 प्रतिशत है असम और सिक्किम को छोड़कर समूचा पूर्वोत्तर राज्य इसी वर्ग में आते हैं इस क्षेत्र में वनों का घनत्व 75% से अधिक है

सघन वन - इसके अंतर्गत 73.60 लाख हेक्टयर भूमि आती है जो कुल भौगोलिक क्षेत्र का 3% है हिमालय की मध्य प्रदेश जम्मू कश्मीर महाराष्ट्र और उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्र में इस प्रकार के वनों का विस्तार है यहां वनों का घनत्व 62.99% है खुले वन - 2.5 करोड़ हेक्टेयर भूमि पर इस प्रकार वनों का विस्तार है यह कुल भौगोलिक क्षेत्र का 7.12% है कर्नाटक तमिलनाडु केरल आंध्र प्रदेश उड़ीसा के जिले एवं असम के 16 आदिवासी जिलों में इस प्रकार के वनों का विस्तार है असम आदिवासी बाहुल्य जिलों में वृक्ष का घनत्व 23.13% है।

झड़ियां एवं अन्य वन- राजस्थान के मरुस्थलीय क्षेत्र एवं अदिश क्षेत्र में इस प्रकार के वन पाए जाते हैं पंजाब हरियाणा उत्तर प्रदेश बिहार एवं पश्चिम बंगाल के मैदानी भागों में वृक्षों का घनत्व 10% से भी कम है इसलिए इस क्षेत्र इसी वर्ग में सम्मिलित है इसके अंतर्गत 2.59 आती है जो कुल भौगोलिक क्षेत्र का 8.6% है

मैंग्रोव्स वन- विश्व के तटीय  क्षेत्र का मात्र 5 प्रतिशत 4500 किलोमीटर क्षेत्र भारत में है जो समुद्र तटीय क्षेत्रों में फैला है जिसमें आगरा क्षेत्र पश्चिम बंगाल के सुंदरवन इसके बाद गुजरात तथा अंडमान निकोबार द्वीपसमूह आते हैं कुल मिलाकर 12 राज्य तथा केंद्र शासित प्रदेशों में आंध्र प्रदेश गुजरात कर्नाटक महाराष्ट्र उड़ीसा अंडमान निकोबार पांडिचएरी केरल एवं दमन एवं दीप शामिल है

प्रशासनिक आधार पर वनों का वर्गीकरण

प्रशासनिक आधार पर भारतीय वानों को   इन वर्गों में विभाजित किया गया है

1.सुरक्षित वन

2.रक्षित वन

3.अवर्गीकृत वन

सुरक्षित वन (reserved forests)-  यह वन वनस्पति की दृष्टि से महत्वपूर्ण होते हैं इनमें से ना तो लकड़िया ही काटी जाती है और ना ही पशु चराने दिए जाते हैं इसलिए इसे सुरक्षित वन कहते हैं। इन वनों का क्षेत्रफल 416 हेक्टेयर है जो कुल 1 क्षेत्र का 53.8 प्रतिशत है।

आरक्षित वन (प्रोटेक्टेड फॉरेस्ट) इनको स्वतंत्र वन भी कहते हैं । इनमें लकड़ी काटने और पशुओं को चराने के लिए सरकार की ओर से सीमित रूप से उपयोग करने की सुविधा दी जाती है। वनों की अत्यधिक नष्ट होने से बचाने के लिए इनकी सुरक्षा की जाती है । वन विभाग के अनुसार कुल 1 क्षेत्र का लगभग एक तिहाई हिस्सा आरक्षित वन है।

अवर्गीकृत वन या बंजर भूमि -जो सरकार, व्यक्तियों, समुदाय के स्वामित्व में होते हैं । स्वतंत्र एवं अवर्गीकृत वन के अंतर्गत रखा गया है, इस प्रकार के वनों में लकड़ी काटने और पशुओं को चराने पर सरकार की ओर से प्रतिबंध नहीं है । सरकार इसके लिए शुल्क लेती है कुल क्षेत्र का 70% अवर्गीकृत है।

वनस्पतियों की विविधता के आधार वनों का वर्गीकरण

वनस्पतियों की विविधता के आधार पर भारत को आठ वानस्पतिक क्षेत्रों में बॉटा जा सकता है-

1. पश्चिमी हिमालय क्षेत्र- कश्मीर से कुमाऊँ तक का चीड़, कोणधारी वनों का क्षेत्र अत्यंत ऊँचे वृक्षों का क्षेत्र है। 4,750 मीटर से भी अधिक ऊँचाई पर अल्पाइन वृक्षों की बहुलता है।

2. पूर्वी हिमालय क्षेत्र- इस क्षेत्र में ओक, बेंत और फूलों के वृक्षों और पौधों की बहुलता है। ये सभी सदाबहार पौधे हैं।

3. असम क्षेत्र- ब्रह्मपुत्र और सुरमाघाटी के बीच के इस क्षेत्र में बाँसों और लंबी घासों के झुरमुटों से युक्त सदाबहार वन मिलते है।

4. सिंधुघाटी का क्षेत्र- पंजाब, पश्चिमी राजस्थान और गुजरात के मैदान के इस भाग में बबूल, नागफनी, खजूर, ओक इत्यादि के पौधों की बहुलता है। इंदिरा गाँधी नहर के किनारे नए पौधे उगने लगे हैं।

5. गंगा मैदान का क्षेत्र- अरावली से पूर्वी समुद्री तट के बीच के इस कृषि-प्रधान क्षेत्र में आम, अमरूद, महुआ, शीशम, तेंदू इत्यादि उपयोगी वृक्ष व्यक्तिगत बाग-बगीचों में तथा कुछ वनों में विस्तृत रूप से मिलते हैं। कहीं-कहीं केले और लीची के बागान भी हैं। बरगद और पीपल के पेड़ अब कम होने लगे हैं। सड़कों के किनारे युक्लिप्टस और अशोक के पेड़ देखे जा सकते हैं।

6. दक्षिण का पठारी क्षेत्र- पठार के इस क्षेत्र में प्रायः पतझड़वाले वृक्ष हैं। कहीं-कहीं जंगली झाड़ियाँ भी विद्यमान हैं।

7. मालाबार तटीय क्षेत्र- इस क्षेत्र में सुपारी, नारियल, रबर, काजू, चाय और कॉफी के बागान अधिक हैं। गर्म मसालों के पौधों की बहुतायत है।

8. अंडमान-द्वीप क्षेत्र-इन समुद्री द्वीपों पर सदाबहार वृक्ष अधिक हैं। कहीं-कहीं अर्द्ध-सदाबहार पौधे हैं, परंतु तटीय क्षेत्रों मे मैंग्रोव या तटीय पौधों की अधिकता है।

वन तथा वन्य प्राणियों का ह्रास (दीर्घ उत्तरीय प्रश्न )

वनस्पति प्रकृति का मानव को दिया गया एक अमूल्य उपहार है। ये वनस्पतियाँ अपने नाना रूपों से मानव की रक्षा करते हुए विकास को गतिशील बनाने में सहायक होती हैं। दुर्भाग्य से विकास के इस दौर  में मानव, प्रकृति के अमूल्य योगदान को हमेशा, याद रख पाते। मानव ने स्वार्थ के वशीभूत होकर प्रकृति का चीरहरण ही करना शुरू कर दिया है। विकास एक आवश्यक पहलू है, किन्तु संतुलित विकास द्वारा ही स्थायी विकास की कल्पना की जा सकती है। मानव ने विकास के नाम पर सड़कों, रेलमार्गों, शहरों का निर्माण करना शुरू किया। इसके लिए पेड़ों की अंधाधुंध कटाई की गयी है। फलत: वनों का नाश तो हुआ ही, वन्य प्राणियों का आश्रय स्थल भी छिनने लगा। बड़े पेमाने पर शाकाहारी एवं मांसाहारी पशुओं का अंधाधुध शिकार कर मानव ने जीवों में असंतुलन पेदा कर दिया है। आवास हेतु इमारती लकड़ियों की आवश्यकता ने भी वनां का हास करवा दिया। पुन: कृषि में अत्यधिक उपज के लिए अत्यधिक सिंचाई, रासायनिक खाद व रसायनों का प्रयोग किया गया इसके कारण एक ओर भूमि निम्नीकरण से वनों को क्षति पहुँची, तो दूसरी तरफ रसायनों के द्वारा जलों के दृषित होने से कई प्राणिजगत के अस्तित्व पर ही खतरा उत्पन्न हो गया। प्रगति के नाम पर कल-कारखानों की स्थापना हुई। इससे भी वन कटें। पुन: इन कल-कारखानों की स्थापना हुई। इससे भी वन कटे। पुन: इन कल-कारखानों के धुओं ने जहाँ वातावरण को प्रदूषित कर अम्लीय वर्षा जैसे अनेक प्रदूषणजनित परिणामों को जन्म दिया, वहीं इनके कचरों से अनेक जलस्रोत दूषित हो गए। इससे इन जलस्रातो का अमृत जल दूषित तो हुआ ही, साथ ही अनेक जलीय जीवों के अस्तित्व पर संकटके बादल छाने लगे। वनों के हरास ने प्राकृतिक संतुलन को गड़बड़ कर दिया। फलतः मौसमजनित समस्या को भी जन्म दिया ।

हमारे वन और  वन्यजीवों के ह्रास के चार प्रमुख कारक (लघु उत्तरीय प्रश्न )

 वन्यजीवों के ह्रास के  प्रमुख कारक

1. प्राकृतिक आवासों का अतिक्रमण यातायात की सुविधा में वृद्धि आदि कारकों से वन्यजीवों के आवासों का अतिक्रमण हो रहा है जिससे वन्यजीवों की सामान्य बृद्धि तथा प्रजनन क्षमता में भारी गिरावट आई है

2.प्रदूषण जनित समस्या प्रदूषण के कारण वन्यजीवों का जीवन चक्र प्रभावित हो रहा है

3.आर्थिक कारक अनेक वन्यजीवों एवं उनके उत्पादों का उपयोग आर्थिक लाभ के लिए हो रहा है जिससे उसका दोहन हो रहा है

4.सह विलुप्तता जब एक जाति विलुप्त होती है तब उस पर आधारित दूसरी जातियां भी विलुप्त होने लगती है।

 

वन के  ह्रास के  प्रमुख कारक

5. कृषि में विस्तार: भारतीय वन सर्वेक्षण के आँकड़े के अनुसार भारत में 1951 से 1980 के बीच 262,000 वर्ग किमी से अधिक के वन क्षेत्र को कृषि भूमि में बदल दिया गया। इसके अलावा आदिवासी क्षेत्रों के एक बड़े भूभाग को झूम खेती और पेड़ों की कटाई से नुकसान पहुँचा है।

6.संवर्धन वृक्षारोपण: इस प्रकार के वृक्षारोपण में व्यावसायिक महत्व के किसी एक प्रजाति के पादपों का वृक्षारोपण किया जाता है। कुछ चुनिंदा प्रजातियों को बढ़ावा देने के लिए भारत के कई भागों में संवर्धन वृक्षारोपण किया गया। इससे अन्य प्रजातियों का उन्मूलन हो गया।

8.विकास परियोजनाएँ: आजादी के बाद से बड़े पैमाने वाली कई विकास परियोजनाओं पर अमल किया गया। इससे जंगलों की भारी क्षति हुई। नदी घाटी परियोजनाओं के कारण 1951 से आजतक 5,000 वर्ग किमी से अधिक वनों का सफाया हो चुका है।

9.खनन: खनन से कई क्षेत्रों की जैविक विविधता को भारी नुकसान हुआ है। उदाहरण: पश्चिम बंगाल के बक्सा टाइगर रिजर्व में डोलोमाइट का खनन।

10.संसाधनों का असमान बँटवारा: अमीरों के पास अधिक संसाधन रहते हैं जबकि गरीबों के पास कम संसाधन रहते हैं। अमीर लोग संसाधनों का दोहन करते हैं जिससे पर्यावरण को भारी नुकसान होता है।

वन्य जीवन संरक्षण का महत्व

वनस्पतियाँ प्रकृति की अनुपम देन हैं और पृथ्वी पर पारिस्थितिकी सन्तुलन कायम रखने में अहम भूमिका निभाती हैं। औद्योगीकरण और विकास प्रक्रियाओं से पर्यावरण में फैलते प्रदूषण को एक स्तर तक नियन्त्रित करने की इनकी क्षमता प्रकृति प्रदत्त है। मनुष्य को अपना भविष्य सुरक्षित रखना है तो उसे वनस्पतियों के संरक्षण के प्रति और सचेत होना होगा।

वन्य जीवन संरक्षण के उपाय  

वनों के संरक्षण के लिए निम्नांकित उपाय किए जा सकते हैं-

1. जिन क्षेत्रों से निकट या अतीत में वृक्ष काट डाले गए  वहाँ पुनः वृक्षारोपण किया जाए।

2. वनों से केवल परिपक्व वृक्ष ही काटे जाएँ, अर्थात जिन वृक्षों का विकास अब और अधिक न होनेवाला है उन्हें ही काटकर निकाला जाए।

3. वन क्षेत्र में कटाई के लिए फसल-चक्र पद्धति अपनाई जाए तो क्रम से वन विकसित होगा और नियमित लाभ होता रहेगा।

4. वन क्षेत्र का विस्तार किया जाए, अर्थात नए वन लगाए जाएँ।

5. वनों की देखभाल ठीक से की जाए ताकि हमारी असावधानी से वहाँ आग न लगे। आग की रोकथाम के लिए अग्निरक्षा पथ और अग्निरोधक पथ की व्यवस्था की जाए

6. वन के संरक्षण के लिए एक निश्चित नीति हो। भारत सरकार ने वनों को सुरक्षित और संरक्षित तक घोषित किया है।

हमारी वन-नीति के अनुसार, समस्त क्षेत्र के 33.3% पर वनों का विस्तार होना चाहिए और यह प्रतिशत पहाड़ी प्रांतों में 60% तथा मैदानी प्रदेशों में 20% होना चाहिए।

7. वृक्षों में लगनेवाली दीमक तथा अन्य कीटाणुओं और बीमारियों से बचाव के लिए वायुयान द्वारा दवा का छिड़काव होना चाहिए।

8. सामाजिक वानिकी प्रोत्साहित की जाए। (परती जमीन पर जल्द उगनेवाला उपयोगी पेड़ लगाना, जिससे फल, काष्ठ, ईधन आदि की समस्या हल हो ।

आगे पढ़े ..>>


THE ART WORLD

PATNA, BIHAR