सत्ता में साझेदारी की कार्यप्रणाली अध्याय 2 (क ) 10 वी एवं सभी प्रतियोग्याता परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण नोट्स



अध्याय 2 (क )
सत्ता में साझेदारी की कार्यप्रणाली 


सत्ता की साझेदारी से तात्पर्य है कि उसकी जिम्मेदारी ऊपर से नीचे तक बांटी होती है। सत्ता के शक्तियां किसी एक बिंदु पर ही सिमटने नहीं पाती, वह विभिन्न रूपों में बट जाती है । भारत का उदाहरण ले तो यहां केंद्र और राज्यों के बीच प्रशासनिक अधिकार और कर्तव्य पूर्णता बड़े होते हैं 
सत्ता के साझेदारी का एक रूप
1. कार्यपालिका 2. न्यायपालिका 3. व्यवस्थापिका मे बांटा हुआ होना भी है 
न्यायपालिका यह देखती है कि कोई किसी के अधिकारों का अतिक्रमण नहीं कर पाते राज्य सरकारें जिला से लेकर ग्राम पंचायतों तक सत्ता की साझेदारी की व्यवस्था करती है नगर निगम, नगर पंचायत, नगर पालिका, नगर परिषद, जिला परिषद, पंचायत समिति ग्राम पंचायत आदि इसी के उदाहरण है ।

सत्ता की साझेदारी लोकतंत्र में क्या महत्व रखती है ?
सत्ता की साझेदारी लोकतंत्र में बहुत अधिक महत्व रखती है । इसी के चलते कोई किसी को दबाकर नहीं रख सकता, लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था की एकमात्र ऐसी शासन व्यवस्था है जिसमें ताकत सभी के हाथों में होती है। सभी को राजनीतिक शक्तियों में हिस्सेदारी या साझेदारी करने की व्यवस्था रहती है। इसका महत्व विशेषताएं इस बात में है कि किसी को असंतोष प्रकट करने की आवश्यकता नहीं पड़ती । यदि बहुमत आपके साथ है तो अर्थ है कि सभी आपसे संतुष्ट है यदि किसी को केंद्र में मौका नहीं मिलता  वो राज्य के शासन में साझेदारी कर सकता है । यदि वह इसमें भी असफल हो जाता है , तो स्थानीय निकायों में अपना भाग आजमाता है यदि वहां भी उसे जीत नहीं मिलती इसका अर्थ है कि जनता उसे इस काबिल नहीं समझती | भले ही वह विरोध का झंडा लहराते रहे | 
सत्ता की साझेदारी के अलग अलग तरीके क्या है ?
आधुनिक लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में सत्ता के भागीदार के रूप में कई स्तर देखने को मिलता है जिनमें चार प्रमुख रुप हैं- 
सरकार के विभिन्न अंगों के बीच सत्ता का विभाजन सरकार के तीन अंग होते हैं विधायिका ,  कार्यपालिका एवं न्यायपालिका
किसी एक अंग में सत्ता केंद्रित नहीं कर के सरकार ने तीनों अंगों के बीच जब सत्ता का विभाजन कर दिया जाता है तब उसे शक्तियों का पृथक्करण कहते हैं । इससे किसी एक अंग के द्वारा शक्ति के दुरुपयोग की संभावना नहीं रहती । एक ही स्तर पर आकर सरकार के तीनों अंग अपनी-अपनी सत्ता का प्रयोग करते हैं इस आधार पर इसे सत्ता का क्षेत्रीय विभाजन कहा जाता है।इससे सरकार के तीनों अंगों के बीच संतुलन बना रहता है इसे नियंत्रण एवं संतुलन व्यवस्था भी कहते हैं। 
विभिन्न स्तरों पर संगठित सरकारों के बीच सत्ता का विभाजन किसी भी बड़े लोकतांत्रिक शासन एक जगह से नहीं चलाया जा सकता है । सामान्यता शासन व्यवस्था को तीन स्तरों पर विभाजित किया जाता है राष्ट्रीय स्तर पर, केंद्र स्तर पर तथा प्रांतीय या क्षेत्रीय स्तर पर । सत्ता का विभिन्न स्तरों पर गठित सरकारों के बीच बीच विभाजन कर दिया जाता है । भारत में भी दो स्तरों पर सरकार का गठन की व्यवस्था की गई है केंद्र सरकार तथा राज्य सरकार  संविधान द्वारा सरकार तथा राज्य सरकार के बीच सत्ता का विभाजन कर दिया गया इस उद्देश्य तीन सूचियां बनाई गई हैं संघ सूची, राज्यसूची एवं समवर्ती सूची। 

विभिन्न समुदायों के बीच सत्ता का विभाजन किसी भी लोकतांत्रिक राज्य में विभिन्न समुदाय के लोग रहते हैं विभिन्न धर्म के लोग रहते हैं अलग-अलग भाषाएं अलग-अलग जाति के लोग रहते हैं जिसको दो आधारों पर मुख्यता बांटा जाता है।अल्पसंख्यक  एवं बहुसंख्यक सत्ता का बंटवारा अल्पसंख्यक समुदाय और बहुसंख्यक समुदाय दोनों के बीच कर दिया जाता है । विभिन्न सामाजिक समूहों के बीच सत्ता के विभाजन होने से आपसी एकता बनी रहती है 

सत्ता का साझेदारी का प्रत्यक्ष रुप तब दिखता है 
जब दो या दो से अधिक दल मिलकर चुनाव लड़ती है या सरकार का गठन करती है ।
सत्ता में भागीदारी की आवश्यकता– सत्ता के भागीदारी की आवश्यकता लोकतंत्र में सफल संचालन में सहायक होता है सत्ता में भागीदारी राजनीतिक व्यवस्था को दृढ़ता प्रदान करती हैं एवं विभिन्न सामाजिक समूहों के बीच सत्ता का विभाजन करके आप आपसी टकराव को कम किया जाता है ।

भारत में संघीय शासन व्यवस्था की आवश्यकता क्यों पड़ी? 
हमारे भारत में विभिन्न जाति धर्म संप्रदाय भाषा परंपरा और संस्कृति के लोग निवास करते हैं एकात्मक संविधान की व्यवस्था पर उन्हें एकता के सूत्र में नहीं मान सकता था भारत जैसे विशाल भारत में संघीय शासन व्यवस्था की आवश्यकता पड़ी  
भारत की संघीय शासन व्यवस्था की किन्हीं विशेषताओं का उल्लेख करें  
भारत की संघात्मक व्यवस्था की निम्नलिखित विशेषताएं हैं- 
· दोहरी सरकार 
· अधिकार क्षेत्र अलग अलग 
· स्वतंत्र एवं निष्पक्ष न्यायपालिका 
· संविधान की सर्वोच्चता 
· संविधान के मौलिक प्रावधानों में संवैधानिक संशोधन द्वारा ही परिवर्तन 
· छत्रिय विविधताओं का सम्मान 
लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण का क्या अर्थ है ?
भारतीय संविधान द्वारा एक लोक कल्याणकारी राज्य की स्थापना की गई है इसका उद्देश्य समाजवादी समाज की स्थापना करके जनता के जीवन को सुखमय बनाने का प्रयास करना है लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण के अंतर्गत केंद्र सरकार द्वारा जारी की गई योजनाओं को स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं द्वारा क्रियान्वित कराने का प्रयास किया जाता है  
                                                                                        संविधान की सर्वोच्चता संघीय शासन व्यवस्था की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता है कि मेरे सरकारी अधिकारियों की सरकार ने संविधान के ऊपर नहीं है सर्वोच्च न्यायालय को संविधान का रक्षक बनाया गया है  
संघीय शासन व्यवस्था की एक विशेषता यह है कि इसमें क्षत्रिय विविधताओं का पूरा सम्मान किया जाता है  राष्ट्रीय एकता की प्राप्ति के उद्देश्य के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि दोनों स्तरों की सरकारों के बीच सत्ता विभाजन की व्यवस्था पर समाहित सहमति हो राष्ट्रीय एकता बनी रहे इसलिए केंद्र को शक्तिशाली बनाया गया है  राज्य सरकारों को वह उसके कार्यों के बारे में निश्चित और जोरदार आदेश दिया गया है , तथा विकास की दिशा में समग्र प्रगति करने की बात कह कर राष्ट्रीय एकता के आधार को मजबूत किया गया है 
संघ राज्य का अर्थ 
संघ राज्य का अर्थ है - सत्ता का ऊर्ध्वाधर वितरण इस तरह के राज्य के लिए पूरे देश की एक सरकार केंद्र सरकार होती है और राज्य प्रांतों के लिए अलग-अलग केंद्र और राज्यों के बीच संविधान में उल्लेखित सत्ता शक्ति का स्पष्ट बंटवारा रहता है  राज्य के नीचे भी सत्ता के साझेदार रहते हैं जिसे स्थानीय स्वशासन कहते हैं । सत्ता के इसी बंटवारे को संघराज्य संघवाद कहते हैं 
सत्ता की साझेदारी की कार्यप्रणाली को हम दो भागों में बांट सकते हैं संघात्मक शासन व्यवस्था अर्थात दोहरी सरकार एकात्मक शासन व्यवस्था अर्थात इकहरी सरकार | 
संघीय शासन व्यवस्था की पांच मुख्य विशेषताएं 
ü संघीय शासन व्यवस्था में सरकार दो या अधिक स्तर वाली होती है 
ü प्रत्येक स्तर की सरकार का अपना अपना अधिकार क्षेत्र होता है 
ü इसके अंतर्गत अदालतों को संविधान और विभिन्न स्तरों की सरकारों के अधिकारों की व्याख्या करने का अधिकार है 
ü वित्तीय स्वायत्तता सुनिश्चित करने के लिए संघीय शासन व्यवस्था में प्रत्येक स्तर की सरकार के लिए राजस्व के अलग-अलग स्रोत निर्धारित हैं 

शासन के संघीय और एकात्मक स्वरूपों में अंतर

संघीय शासन

एकात्मक शासन

संघीय शासन व्यवस्था में सरकार के विभिन्न स्तरों में सत्ता की साझेदारी होती है जैसे केंद्र व राज्य सरकार के बीच सत्ता की साझेदारी 

एकात्मक शासन व्यवस्था में शासन की संपूर्ण शक्ति केंद्र सरकार अथवा राज्य सरकार के हाथ में होती है  

संघीय शासन व्यवस्था में के केंद्र में राष्ट्रीय अथवा राज्यों के मुद्दे होते हैं 

एकात्मक सत्ता हमेशा सत्ता के केंद्रीयकरण पर बल देती है  

संघीय शासन व्यवस्था में केंद्र व गैर केंद्रीय सरकार के बीच संविधान के अनुसार सत्ता का स्पष्ट विभाजन होता है कनाडा ब्राजील तथा संयुक्त राज्य अमेरिका आदि संघीय शासन व्यवस्था के उदाहरण है 

एकात्मक शासन व्यवस्था में किसी प्रकार का कोई प्रावधान नहीं होता इटली फ्रांस जापान आदि एकात्मक शासन व्यवस्था के कुछ उदाहरण है 


समाप्त 

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