पंचायती राज व्यवस्था : बिहार
‘‘स्थानीय स्वशासन एक ऐसा शासन है, जो अपने सीमित क्षेत्र में प्रदत्त अधिकारों का उपयोग करता हो।’’
भारत एक
विशाल जनसंख्या वाला लोकतांत्रिक देश है। लोकतंत्र की मूल भूत मान्यता है कि
सर्वोच्च शक्ति जनता में होनी चाहिए । सभी व्यक्ति इस व्यवस्था से प्रत्यक्षत: जुडंकर शासन
कार्य से सम्बद्ध हो सकें इस प्रकार का अवसर स्थानीय स्वशासन ब्यवस्था द्वारा संभव
हो सकता है। स्थानीय स्वशासन जनता द्वारा शासन स्थानीय स्वशासन कहलाता है। स्थानीय
स्वशासन के दो क्षत्रे है। (1) ग्रामीण एवं नगरीय क्षेत्र। पंचायती राज ग्रामीण
व्यवस्था एवं नगरपालिका नगरीय व्यवस्था को कहा जाता है ।
ग्रामीण स्थानीय स्वशासन
- पंचायत
व्यवस्था के अंतर्गत सबसे निचले स्तर पर ग्राम पंचायत होगी। इसमें एक या एक
से अधिक गाँव शामिल किये जा सकते है।
- ग्राम
पंचायत कर शाक्तियों के सम्बन्ध में राज्य विधान मंडल द्वारा कानून बनाया
जायेगा । जिन राज्यों की जनसंख्या 20लाख से कम है वहॉ दो स्तरीय पंचायत (जिला
व ग्राम ) का गठन किय जायेगा ।
- सभी
स्तरों की पंचायतो के सभी सदस्यों का चुनाव ‘वयस्क मताधिकार’ के आधार पर पांच
वर्ष के लिए किया जायेगा ।
- ग्राम
स्तर के अध्यक्ष का चुनाव प्रत्यक्षत: तथा जनपद व जिला स्तर के अध् यक्ष का
चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से किया जायेगा ।
- पंचायत
के सभी स्तरों पर अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के सदस्यों के लिए उनके
सख्या के अनुपात में आरक्षण दिया जायेगा ।
- महिलाओं
को 50 प्रतिशत आरक्षण दिया जायेगा ।
- पांच
वर्ष के कार्य काल के पूर्व भी इनका (पंचायतो का) विघटन किया जा सकता है।
परन्तु विघटन की दशा में 6 माह के अंतर्गत चुनाव कराना आवश्यकता होगा।
ग्राम पंचायत
‘पंचायत’ का शब्दिक अर्थ पाँच पंचो की समिति से है। प्राचीन
काल में गाँव के झगड़ों का निपटारा पाँच पंचो की समिति द्वारा किया जाता था। इसी
व्यवस्था से पंचायत शब्द का जन्म हुआ। ग्राम पंचायतो का मुख्य उद्देश्य गाँवो की
उन्नति करना और ग्राम वासियों का आत्म-निर्भर बनाना है। प्राय: अधिकांश राज्यो के
गाँवो में एक ग्राम सभा, ग्राम पंचायत और न्याय पंचायत होती है।
बिहार पंचायती राज अधिनियम 2000 द्वारा ग्राम पंचायतों का गठन किया गया है अधिनियम में यह प्रावधान किया गया है कि बिहार सरकार के आदेश से जिला दंडाधिकारी जिला गजट में अधिसूचना निकाल कर किसी स्थानीय क्षेत्र को जिससे कोई गांव या निकटस्थ गांव के समूह अथवा किसी गांव के भाग को ग्राम पंचायत घोषित कर सकता है इस क्षेत्र की जनसंख्या लगभग 7000 के करीब होगीl अधिनियम में जिलाधिकारी को यह अधिकार दिया गया है कि वह ग्राम पंचायत में किसी गांव को या उसके विभाग को अलग कर सकता है या उसमें शामिल ही कर सकता है l एक पंचायत क्षेत्र लगभग 500 की आबादी पर वार्डों में विभक्त होता है जिसकी संख्या सामान्यता 15 से 16 तक होती है |
- ग्राम
सभा गांव के वयस्क नागरिकों को मिलाकर बनायी जाती है।
- ग्राम
पंचायत में एक सरपंच, एक उप-संरपच और कुछ पंच होते है ये सभी गा्रम सभा
द्वारा चुने प्रतिनिधि होते है।
- न्याय
पंचायत का चुनाव सम्बन्धित ग्राम पंचायत करती है। न्याय पंचायत केवल
ग्रामीणों के निम्न स्तर के दीवानी और फौजदारी विवादों को सुनती है, न्याय
पंचायतों एक निश्चित धन राशि तक जुर्माना वसलू सकती है। किन्तु कारावास की
दण्ड नही दे सकती।
ग्राम पंचायत के कार्य-
ग्राम पंचायत के आय के साधन-
राज्य व्यवस्थापिका पंचायतों को टैक्स लगाने एवं उनसे प्राप्त
धन को व्यय करने का अधिकार देती है। इसके अतिरिक्त राज्य सरकार द्वारा अनुदान
प्राप्त होता है। इस आय व्यय का जांच करने के लिए वित्त आयोग गठित है जो अपनी
रिपार्ट प्रति 5 वर्ष में राज्यपाल को देगा। जिलाधीश को पंचायतों का निरीक्षण एव
समय से पवूर् भंग करने का अधिकार दिया गया है।
ग्राम पंचायत के प्रमुख अंग
ग्राम रक्षा दल का गठन
सामान्य पहरा, निगरानी
एवं आकस्मिक घटनाओं जैसे अगलगी, बाढ़, बांध में दरार, महामारी, चोरी, डकैती आदि का
सामना करने,सार्वजनिक शांति एवं व्यवस्था बनाए रखने तथा सरकार द्वारा समय-समय पर
सौंपे गये कार्यों को सम्पादित करने हेतु विहित रीति से एक दलपति की नियुक्ति की
जाएगी।
एक दलपति के अधीन प्रत्येक ग्राम पंचायत के अंतर्गत एक
''ग्राम रक्षा दल'' का गठन किया जाएगा। ग्राम रक्षा दल में ग्राम के 18 वर्ष से 30
वर्ष तक के शारीरिक रूप से सभी योग्य व्यक्ति सदस्य होंगे। ग्राम रक्षा दल के गठन,
कर्तव्य एवं उपयोग के लिए सरकार नियम बनाएगी।
ग्राम कचहरी
प्रति ग्राम पंचायत क्षेत्र में न्यायिक कार्यों को संपन्न करने हेतु 1 ग्राम कचहरी का गठन किया जाता है ग्राम कचहरी का गठन प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा किया जाता है जिसमें एक निर्वाचित सरपंच होता है और निश्चित संख्या में प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित पंच लगभग 500 की आबादी को प्रतिनिधित्व करता हैl ग्राम कचहरी में भी अनुसूचित जाति जनजाति पिछड़े वर्ग एवं महिलाओं के लिए स्थान आरक्षित हैl ग्राम पंचायत के तरह ग्राम कचहरी का भी कार्यकाल 5 वर्ष का है l यदि ग्राम कचहरी को पहले भी गठित किया जाता है तो पुण: निर्वाचन 6 महीने के अंदर करा लेना पड़ता है l ग्राम कचहरी का प्रधान सरपंच होता है अधिनियम के अनुसार ग्राम कचहरी का सरपंच ग्राम पंचायत की मतदाता सूची में पंजीकृत मतदाताओं के बहुमत द्वारा प्रत्यक्ष ढंग से निर्वाचित किया जाएगा l निर्वाचन के बाद ग्राम कचहरी अपनी पहली बैठक में निर्वाचित पंच ओं में से बहुमत द्वारा एक उपसरपंच का चुनाव करती है | ग्राम कचहरी का एक सचिव होता है जिसे न्याय मित्र के नाम से जाना जाता है, उसकी नियुक्ति सरकार द्वारा की जाती है | न्याय मित्र सरपंच के कार्य में सहयोग देता है, वहीं न्याय सचिव ग्राम कचहरी के कागजात को रखता है| सरपंच सभी प्रकार के अधिनियम 10000 तक के मामले की सुनवाई कर सकता है |
ग्राम सभा और ग्राम पंचायत में अंतर
प्रत्येक प्रखंड के लिए एक पंचायत समिति होती है पंचायत
समिति में निम्नलिखित प्रकार के सदस्य होते हैं
1. निर्वाचित सदस्य प्रखंड को कई निर्वाचन क्षेत्रों में बांट दिया जाता है प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र से एक सदस्य निर्वाचित होते हैं जो 5000 लोगों का प्रतिनिधित्व करती हैं l अनुसूचित जाति जनजाति तथा पिछड़े वर्गों की जनसंख्या के हिसाब से स्थान सुरक्षित होते हैं l महिलाओं के लिए 50% स्थान आरक्षित हैl
2पदेन सदस्य निर्वाचित
सदस्यों के अतिरिक्त ग्राम पंचायत का मुखिया पंचायत समिति का पदेन सदस्य होता है l इसके अलावा सदस्य के रूप में विधानसभा और लोकसभा के सदस्य होते हैं सभी सदस्यों का
कार्यकाल 5 वर्षों का होता है l पंचायत समिति के निर्वाचित सदस्य अपने में से एक उप
प्रमुख निर्वाचित करते हैंl सामान्यतः प्रखंड विकास पदाधिकारी वीडियो पंचायत समिति
का कार्यपालक पदाधिकारी होता है l
पंचायत समिति के कार्य
समिति सभी ग्राम पंचायतों की वार्षिक योजना पर विचार विमर्श करती हैl तथा समिति योजना को जिला परिषद में प्रस्तुत करती है l पंचायत समिति ऐसे कार्यों का संपादन एवं निष्पादन करती है, जो राज्य सरकार तथा या जिला परिषद् इस इस होती है l इसके अतिरिक्त सामुदायिक विकास कार्य एवं प्राकृतिक आपदा के समय राहत का प्रबंध करना भी इनकी महत्वपूर्ण जिम्मेवारी है l पंचायत समिति अपना अधिकांश कार्य स्थाई समिति द्वारा करती हैl
बिहार की नगरीय शासन व्यवस्था
नगर पंचायत
नगर परिषद
नगर परिषद के अंग
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निर्वाचन निर्वाचन के उद्देश्य से नगर निगम
को कई भागों में बांट दिया जाता है प्रत्येक वार्ड में से एक सदस्य निर्वाचित
होकर आते हैं निर्वाचन वयस्क मताधिकार के आधार पर होता है नगर निगम में कम से कम
45 और अधिक से अधिक 75 बार हो सकते हैंl
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नगर निगम के प्रमुख अंग
महापौर एवं उपमहापौर निगम परिषद अपने सदस्यों के बीच एक महापौर एवं उपमहापौर चुनती है l महापौर निगम परिषद का सभापति होता है तथा निगम की बैठक की अध्यक्षता करता है साथ ही सशक्त स्थाई समिति की अध्यक्षता करता हैl महापौर नगर का प्रथम नागरिक माना जाता है इस नाते और नगर में आए अतिथियों का स्वागत नगर की ओर से करता है l महापौर की अनुपस्थिति में नगर परिषद के सभी कार्यभार उपमहापौर संपादन करते हैंl
2. नालियों का निर्माण मरम्मत एवं सफाई
3. सार्वजनिक स्थानों के कूड़े करकट की सफाई
4. रोशनी का प्रबंध करना
5. पीने का पानी का प्रबंध करना
6. पशुओं की रक्षा करना तथा इसके इलाज की व्यवस्था करना
7. लोगों के स्वास्थ्य एवं इलाज का प्रबंध करना
8. शिक्षा के लिए स्कूलों के स्थापना करना तथा उसका प्रबंधन करना
9. बाजार हाट मेले इत्यादि का प्रबंध करना
10. पुस्तकालयों तथा कला केंद्र की स्थापना करना
11. पार्क फुलवारी आदि का निर्माण और प्रबंधन करना